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सम्पादकीय कलम से 

लालटेन का युग बुझ-बुझ कर रोशनी बिखेरा,

तो तीर-धनुष लिए बंटवारे का हुआ सवेरा,

जल, जंगल जमीन की लड़ाई में, क्रांति ही बना सहारा,

मिलता रहे साथ आपका-हमारा, तो झारखण्ड बनेगा सबसे प्यारा ||

​प्रवीण एक्का 

मेरे प्यारे साथियों, कलम की धार से आप सबको “जोहार”।

आह्वान, ललकार और संघर्ष से वर्तमान में छेछाड़ी घाटी का सुन्दरयुग कायम है, इन खूबसूरत वादियों और स्वच्छ वातावरण की हरी घाटी को हमें मिलकर सजाना-संवारना है |

हम इस पत्रिका के साथ-साथ सामाजिक नवीनीकरण का बिगुलवाद करते हैं | हमारी कोशिश रहेगी कि प्रति माह, वर्तमान परिस्थितियों के प्रमुख विषयों के साथ-साथ योजनाओं और सामाजिक उत्कृष्टता हेतू  संक्षिप्त विवरण इस पत्रिका के माध्यम द्वारा आप तक पहुंचाएं | आपलोग भी अपने लेख इस जनजागरण पत्रिका के माध्यम से दूसरों तक पंहुचा सकते हैं, आपके लेख/योजना/जानकारी जोकि कार्ययोजना सहित और जमीनी हकीकत से रूबरू हों उनका स्वागत रहेगा |

एक छोटी कहानी से बातों को आगे बढ़ता हूँ - एक बहुत ही सुन्दर और विशालकाय तालाब में विभिन्न प्रकार के छोटे - बड़े  जीव जंतु निवास करते थे | उस तालाब की सबसे विशेष बात थी कि, उसमें धरोहर संचित मछलियों की प्राचीनतम प्रजाति पाई जाती थी | उस तालाब का पानी इतना मीठा था कि दूर-दूर से पशु-पक्षी  ,हंस, बगुला आदि  पानी पीने आते थे उनको  तो उस तालाब का पानी इतना अच्छा लगता था, कि वो दूर –दूर तक उसका बखान करते थे | उसी बखान को सुनकर दूर दराज से, नये-नये पशु-पक्षी उस तालाब को देखने और पानी का आस्वादन करने आने लगे | रोजाना तालाब में आने व् पानी पीने की वजह से एक बगुला की दोस्ती तालाब के कुछ मछलियों से हो गई थी | दोस्ती होने के उपरान्त बगुला और मछलियों में रोज देश-दुनिया की बातें होने लगीं |

एक दिन बगुला अपने नये दोस्तों के साथ, उस तालाब को देखने आया, उनके दोस्तों को तालाब बहुत पसंद आया | अगले दिन बगुला और उनके नये दोस्तों में गुफ्तगु हुई, फिर बगुला उस तालाब में आकर वहां की मछलियों के समक्ष एक प्रस्ताव रखा :- “इस तालाब से भी बड़ा और मीठे पानी वाला एक और तालाब है, जहाँ पर आप लोग, यहाँ से कई गुना ज्यादा मजे में रह सकते हैं |”

भोली-भाली मछलियाँ उत्सुकता से प्रश्न पूछने लगीं:-“ क्या सचमुच ! लेकिन हम वहां जायेंगे कैसे ?”

बगुला ने कहा :- “हम आपको अपने चोंच से उठा कर ले जायेंगे और मेरे नये साथी भी आपलोगों को ससम्मान ले जाने का व्यवस्था कर देंगे |”

पूरे तालाब में, अन्यत्र अवस्थित नये तालाब की खबर आग की तरह फ़ैल गई और सभी तरह-तरह की बातें करने लगे | कुछ मछलियाँ अगले दिन नये तालाब को देखने व् जानने की इच्छा जाहिर कीं| उन उत्सुक मछलियों को नया तालाब दिखाने के लिये, बगुला अपने चोंच द्वारा उठा कर उड़ने लगा, उनमें से कुछ की जान दम घुटने से, कुछ की ऊंचाई से गिर जाने की वजह से, तो कुछ को तो नये स्वाद  के आधार पर बगुला  ही खा गया | एक मछली जो ऊंचाई से तालाब के समीप ही गिर गई थी,वो रेंगते हुये, चोटिल अवस्था में, तालाब में वापस आकर पूरा वृत्तांत सुनाई | तालाब में आपबीती की खबर सुनते ही हडकंप मच गया , फिर आनन-फानन में आपातकालीन बैठक बुलाई गई | तालाब की सभाध्यक्षिका ने कहा:- “ये तालाब हमारा संसार है , इसके बाहर हमारे जीवन का कोई वजूद नहीं है | हम एकजुट होकर बगुला और बाहरी जीव जन्तुओं को हमारे तालाब रूपी संसार में शामिल नहीं होने देंगे |” वे सभी इस बात पे सहमति व्यक्त किये, और फिर जैसे ही कोई दुश्मन जीव तालाब पर आते, सभी मिलकर उसपर हमला कर देते | इस प्रकार से उस तालाब में प्रारंभ की भांति पुनः जीवन-यापन होने लगा |

 

साथियों ! अब तक तो आप समझ गए होंगे, कि वो कहानी रूपी ‘तालाब’ कहाँ है? जी हाँ , सही समझे यह काल्पनिक तालाब छेछाड़ी घाटी में है | और वह बाहरी बगुला का नाम ‘नेतरहाट फ़ील्ड फायरिंग रेंज परियोजना’ है |

 

 

 

 

​                                                                                                                    (छेछाड़ी घाटी का चित्रण)

 

संगठन और संघर्ष का बेजोड़ उदाहरण “नेतरहाट फ़ील्ड फायरिंग रेंज परियोजना” के विरोध गाथा में है, जोकि हमारे संयुक्त संघर्षों के फलस्वरूप, आजतक का ऐतिहासिक आन्दोलन रहा है| हम अंतिम गजट से बस एक कदम दूर हैं, हमें पूरा यकीन है, हमें सफलता जरूर मिलेगी, हर हाल में मिलेगी ....आपका और हमारा संयुक्त-संघर्ष जारी रहे ...|

जागरूक रहें, सतर्क रहें और सामाजिक एकता बनायें रखें |

आप सबको अगले अंक तक जोहार !! जय झारखण्ड !! जय भारत !!

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