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अबुआ ललकार

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​प्रवीण एक्का 

समझकर अपने समाज का इतिहास, इतिहास बनाने की ललक रख,

सिद्दू-कान्हू और बिरसा जैसे अडिग निर्णय को,  खुद से लागू करने की  जहमत रख,

अमूल्य है अपनी संस्कृति, जगह और भाषा-शैली, इनको बचाकर आगे बढ़ने की हिम्मत रख,

कदम-कदम पर मिलते हैं दुश्मनों के कांटे, मजबूत जूते पहनकर चलते रहने की हैसियत रख,

दुनियादारी में अलग पहचान है अपनी, उस पहचान के नाम को ऊँचा रखने की चाहत रख,

बदलाव के दौर में हम किसी से नहीं हैं कम,

अगर अपना आदिवासी कोई पिछड़ रहा हो,  तो उसे  साथ लाने की हिमाकत रख,

संगत, मदईत, पड़हा जैसे अन्य 'परंपरागत सामाजिक ढांचे' की समझ रख,

अपनी-अपनी आदिवासी भाषा को, बोलने-सीखने और सिखाने का जज़्बा रख,

सरना धर्म कोड (आदिवासी कोड)  पाने की जद्दोजहद को, अंजाम तक साथ निभाने का हौसला रख।

आदिवासी समाज के प्रति, बदलते रहते हैं जमाने में नजरिये दिन प्रतिदिन,

सीधे पेड़ की भाँति काटे जाते हैं चुनकर, संवैधानिक अधिकार और हक गिन-गिन,

विभिन्न समस्याओं के निपटारे में, आदिवासी समाज के मौलिकता का पालन कर,

सफेदपोश हुक्मगारों की टोली हो या दिकदिक की फेंकी मायाजाल,

कब तक सहेंगे आदिवासी लोग, शोषण, विस्थापन और अन्याय का जंजाल,

शिक्षा, जागरूकता और आर्थिक सशक्तिकरण के आधार से, तैयार करो अपनी हर एक चाल,

एकता अखंडता और मेलमिलाप से हो जाओ सभी आदिवासी एकजुट,

अपने पुर्वजों के बनाये ढाँचे को देने उम्दा आकार, पहल करो सब जिससे बिरसा के सपने हों साकार,

करते हुये समय का सदुपयोग, एक-एक आदिवासी हो जाओ  तैयार,

"जय आदिवासी" और "जोहार" की प्रचंड गूँज हो विश्वपटल पर बारंबार,

"अबुआ दिशुम अबुआ राईज" के नारे को, करने हक़ीक़त से रूबरू,

अबुआ ललकार को करो स्वीकार ! अबुआ ललकार को करो स्वीकार !

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