



डॉ. संजय बाड़ा
आदिवासी कौन है?

आदिवासी कौन है?
प्रकृति प्रेमी आदिवासी आज भी इतिहास में अपने गौरवशाली पुरावृत्त को स्थान दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे है। आदिवासी इस देश के प्रथम वासी है और उनका प्राकृतिक संसाधनों पर प्रथम अधिकार भी है। औपनिवेशिक युग से पूर्व, आदिवासियों से संबंधित किसी भी युग में उनके जीवन के किसी भी पक्ष का कोई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक विश्लेषण नहीं किया गया है। उन्हें जंगली, असभ्य एवं न जाने कितने नकारात्मक उपमाओं से संबोधित किया गया है। आरम्भ से ही आदिवासियों के लिए जल जंगल ज़मीन उनकी अस्मिता एवं उनके पहचान के साथ जुड़ा हुआ है। यह उनके जीवन के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं धार्मिक पहलू के विश्लेषण को प्रगाढ़ करता है।

आदिवासी शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है
आदि + वासी = आदिवासी
इसका अर्थ है आदि काल से निवास करने वाले लोग। भारत की जनसंख्या का 8.6 % अर्थात लगभग 10 करोड़ लोग आदिवासी है । भारत का संविधान आदिवासी शब्द की अपेक्षा ' जनजातीय ' शब्द का उपयोग करता है। जिन क्षेत्रों में आदिवासी निवास करते है उन्हें संविधान की 5 वीं अनुसूची के अंतर्गत रखा गया है। पांचवी अनुसूची 10 राज्यों के आदिवासी इलाकों में लागू है। यह अनुसूची स्थानीय समुदायों का लघु वन उत्पाद, जल और खनिजों पर अधिकार सुनिश्चित करती है।
आदिवासी की पहचान क्या है?
रहन - सहन
भाषा संस्कृति
परंपरा
आदिवासी खानपान
भौगोलिक एकाकीपन
सीधा सरल जीवन
प्रकृति से निकटता
वनोपज पर निर्भरता
संकुचित स्वभाव
आत्मनिर्भरता
यही नहीं, आदिवासी अपनी ईमानदारी, एवं कठिन परिश्रम के लिए भी जाने जाते है। साथ ही उनकी कई विशिष्टता उनके रहन सहन, खान पान एवं उनकी संस्कृति में मौजूद है जिसकी व्याख्या कुछ पंक्तियों में करना अतिश्योक्ति नहीं होगी।
हम जाने-अनजाने में आदिवासियों की एकतरफा और अधूरी तस्वीर बना रहे हैं। और इसी तस्वीर के आधार पर उनके लिए नीति बना देते हैं। फिर उसे लागू करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम शुरू कर देते हैं। ये समुदाय न तो बेचारे हैं और न ही कमजोर, बल्कि वो होशियार और अपने कायदे से जीने वाले लोग हैं, जो अपने पुरखों से सीखे सहज ज्ञान की परंपरा को जीवंत रखे हुए, उसे निरंतर आगे बढ़ा रहे हैं। उनकी शिक्षा उनके समाज की जरूरत और प्रयोगों से मिलती है।
आदिवासी का ज्ञान तटस्थ ज्ञान नहीं है, बल्कि उसकी जीवन प्रक्रिया का हिस्सा है अगर आदिवासी बचेगा तो ही उसका ज्ञान बचेगा। कोशिश उसकी जीवन प्रक्रिया को बचाने की होनी चाहिए। हमारी नीति और कार्यक्रम ऐसे होने चाहिए, जो आदिवासी का जल जंगल ज़मीन से रिश्ते को मजबूत बनाए। यदि यह संबंध बचा तो उनकी कला और संस्कृति तो अपने आप बच जाएगी साथ ही वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संबंधी ज्वलंत मुद्दों के समाधान का मार्ग भी सहज हो जाएगा।