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आदिवासी महिलाओं में प्रवास की समस्या
अनुरंजना संगीता मिंज
'प्रवास' का अर्थ है लोगों का अपने निवास स्थान से स्थानांतरण कर जाना। जिसे पलायन भी कह सकते है। ऐसा उन्हें कई कारणों से करना पड़ सकता है जिनमें आर्थिक तथा गैर आर्थिक कारण शामिल होते है। आज आदिवासी समुदाय का प्रवास देश की एक प्रमुख समस्या के रूप में उभरी है। प्रवास की प्रवृत्ति कई रूपों में देखी जा सकती है जैसे एक गाँव से दूसरे गाँव, गाँव से शहर, एक राज्य से दूसरे राज्य, एक देश से दूसरे देश। वास्तव में महिलाओं के पलायन की समस्या गाँव से शहर की ओर अधिक दिखलाई पड़ती हैं।
आदिवासी महिलाओं के पलायन का सबसे मुख्य कारण आर्थिक है जब महिलाओं को अपने गाँव घर में आय अर्जन हेतु कोई कार्य नहीं मिल पाता तो वे शहरों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर हो जाती है। यदि गाँव की महिला शिक्षित हो तो अवसर की कमी के कारण रोजगार की तलाश में बाहर प्रवास के लिए मजबूर हो जाती है और यदि महिला कम शिक्षित या अशिक्षित होती है तो गाँव मे रोजगार के सीमित विकल्प होने के कारण शहरों की ओर मज़दूरी के लिए या अन्य कार्यों के लिए पलायित कर जाती है।आदिवासी महिलाओं के पलायन के लिए गैर आर्थिक कारण भी महत्वपूर्ण है। आदिवासी क्षेत्रों में प्राकृतिक प्रकोप बाढ़, सूखा, भूकंप एवं बीमारी साथ ही मानवीय क्रियाकलापों जैसे विभिन्न परियोजनाओं के नाम पर, खनन के नाम पर, वन संरक्षण एवं अभयारण्य के नाम पर आदिवासी क्षेत्रों से महिलाओं का पलायन अवश्यम्भावी हो जाता है।

गाँव मे रोजगार, शिक्षा, सड़क, स्वास्थ्य एवं अन्य बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण भी महिलाओं को पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। सामाजिक अवस्था के कारण शोषण एवं उत्पीड़न के कारण भी महिलाओं को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ता है और वे शहरों की ओर रुख करती है। झारखंड के कई जिलों जिसमें गुमला, लातेहार, सिमडेगा, गढ़वा, पलामू एवं लोहरदगा आदि से आदिवासी किशोरियों का पलायन करना दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रायः यह देखा जाता है कि इन जिलों के दुर्गम गाँव टोलों से किशोरियों को रोजगार देने के नाम पर कुछ लोगों द्वारा प्रलोभन देकर शहर की ओर पलायन कराया जाता है औऱ प्रायः ऐसे मामलों में शोषण एवं प्रताड़ना के मामले अधिक देखने को मिलते है। मामला उजागर होने पर कुछ युवतियां वापस तो लायी जाती है पर अधिकांश मामलों में ये युवतियां शहरों की भीड़ में खो जाती है और अपने परिवार से दूर हो जाती है। जहाँ ये कम मज़दूरी पर शोषित एवं प्रताड़ित होती है।पलायन के कारण महिलाएं कई तरह से शोषित होती है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं की उचित देखभाल के अभाव के कारण कई समस्या होती है, प्रसव कहाँ हो, घर से दूर ऐसी अवस्था में महिलाओं को तकलीफ उठानी पड़ती है जिसका प्रभाव नवजात शिशु पर पड़ता है जिससे बच्चे कुपोषण, एनीमिया एवं अन्य बीमारियों से ग्रसित हो जाते है।
आदिवासी महिलाओं के प्रवास की समस्या को दूर करने के लिए सामाजिक आय आधारित समाज की स्थापना करना अति आवश्यक है। सरकार द्वारा मनरेगा और स्वयं समूह सहायता के द्वारा इस दिशा में प्रयास किये जा रहे है ताकि पलायन की समस्या को रोका जा सके। आवश्यकता है कि इन योजनाओं को ईमानदारी पूर्वक लागू किया जाय जिससे जरूरतमंद विशेषकर आदिवासी समाज की महिलाओं को गाँव घर में ही रोजगार उपलब्ध कराया जा सके साथ ही अन्य बुनयादी आवश्यकता जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, स्वच्छ जल आदि की व्यवस्था गांव घर मे समुचित ढंग से की जाय तो आदिवासी समाज के सांस्कृतिक विरासत के साथ उचित समन्वय स्थापित कर आदिवासी महिलाओं की स्थिति बेहतर बनाई जा सकती है औऱ आदिवासी महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
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