



अनु भव: विरोध एवं संकल्प दिवस 2022
अंजु टोप्पो
नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज विरोध एवं संकल्प दिवस 27 वर्षों से मनाया जाता आ रहा है। प्रतिवर्ष 22-23 मार्च को आयोजित इस दिवस के विषय में काफी सुना और पढ़ा था इसलिए मेरी यह प्रबल लालसा थी कि मैं भी इस दिवस मे सहभागी बनूं। सौभाग्यवश इस वर्ष मुझे इस घटना का गवाह बनने का मौका मिला। सामान्य दिनों की अपेक्षा नेतरहाट घाटी में 22मार्च को गाड़ियों का आवागमन काफी बढ़ गया था। दोपहर के 12.30 बजे थे जब हम आयोजन स्थल टूटवापानी मोड़ पहुंचे। प्रत्यक्ष विशाल जनसमूह था जो भिन्न भिन्न दिशाओं से एकजुट हुए थे। किन्हीं के हाथों में चटाई थी तो कोई त्रिपाल बिछाकर बैठे थे, कोई जलावन के लिए लकड़ियों की गठरी गाड़ियों से उतार रहे थे और कोई बड़े डेगची और कलछी पकड़े हुए थी। रात इस स्थल मे बिताने का प्रबंध किया जा रहा था। दुधमुंहे बच्चे, युवा, महिलाएं, पुरुष, वृद्ध सभी उपस्थित थे। कुछ ही देर में जुलूस निकालने की घोषणा की गई। सभी उठ खड़े हो गए और जिस दिशा से वो आए थे वे उस ओर बढ़ने लगे। तीन मार्ग _ महुआडॉड, जोभिपाट,नेतरहाट गुमला मार्ग पर लोग कुछ दूरी जाकर खड़े हो गए।
इस समय माहौल गंभीर था और उक्त घटना की याद दिला रहा था। एकाएक हर दिशा से अदम्य साहस भर देनी वाली हुंकार सुनाई पड़ी। नगाड़े की प्रतिध्वनि पर नारे बुलंद होते गए - आवाज़ दो हम एक हैं , नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज अधिसूचना रद्ध करो, जान देंगे जमीन नहीं देंगे, आदिवासी विस्थापन बंद करो, जल जंगल जमीन हमारा है, आदिवासीयों की जमीन मत लूटो, जन जन का यह नारा है जल जंगल जमीन हमारा है।आदिवासियों के ये बुलंद नारे लगभग 28 वर्षों से घाटी में गूंजते आ रहे हैं। प्रकृति के सानिध्य मे रहने वाले आदिवासी लगातार ही विस्थापन के ख़तरे से जूझ रहे हैं। गैर आदिवासियों के लिए, सरकार के लिए, जमीन महज एक भूमि का टुकड़ा है लेकिन एक आदिवासी के लिए ये उनकी जान से ज्यादा है।


प्रस्तावित नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के धरताल पर आ जाने से लगभग 2.3 लाख हेक्टेयर भूमि से लोग बेदखल हो जाएंगे। महुआडांड, बिशुनपुर, चैनपुर, डुमरी, घाघरा और गुमला प्रखंड मे निवास कर रहे आदिवासी इससे सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। बिहार सरकार द्वारा प्रस्तावित नोटिफिकेशन के अनुसार 245 गांव इस योजना की पूर्ति के लिए उजाड़ दिए जाएंगे। इस क्षेत्र को छावनी बनाकर सरकार द्वारा पुनः आदिवासियों की जमीन छीन ली जाएगी। एक बार फिर उनके अधिकारों का हनन किया जाएगा। आदिवासियों के विस्थापन का यह खेल कई वर्षों से चला आ रहा है।
नेतरहाट घाटी में पहली बार फायरिंग प्रयास वर्ष 1956 मे बिहार सरकार द्वारा अधिसूचना जारी करने पर किया गया था। इस क्षेत्र को मैन्यूवर फील्ड फायरिंग एवं आर्टिलरी प्रैक्टिस एक्ट 1938 के तहत अधिसूचित किया गया था। 1956 से आगामी 37 वर्ष तक लगातार अधिसूचना को नवीनीकृत किया गया था। सेना के द्वारा अभियास प्रत्येक वर्ष, लगातार दो से तीन दिन किया जाता था। अभ्यास के दौरान लोगों को अपने मावेशियों के साथ अस्थाई तौर गांव छोड़कर जाना पड़ता था। कई वर्षों तक सेना की मनमानी, लोगों पर अत्याचार चलता रहा।
1991-92 मे अधिसूचना द्वारा पुनः इसे आगामी 10 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया अर्थात वर्ष 2002 तक। इस अधिसूचना के पूर्व सेना के द्वारा तोपाभ्यास पाठ छेत्रों तक ही सीमित थी, परंतु अब सरकार ने सेना को एक वृहद छावनी बनाने की भी इजाजत दे दी थी, जो 245 गावों को स्थायी तौर पे विस्थापित कर देती। इसकी जानकारी आम लोगों को नहीं थी। जब उन्हें सरकार की यह मंसा की जानकारी हुई तो केंद्रीय जनसंघर्ष समिति ने लोगों को एकजुट करने का बीड़ा उठाया। चर्च ने भी लोगों को जागरूक करने के महत्वूर्ण भूमिका निभाई। छात्रों ने भी अपनी सहभागिता दर्ज की, पलामू स्टूडेंट यूनियन, हीरा बरवे स्टूडेंट यूनियन, बनारी बिशुनपुर स्टूडेंट यूनियन ने अधिसूचना के विरूद्ध लोगों को एकत्रित किया।
वर्ष 1994 मे आर्मी के आगमन के पूर्व केंद्रीय जनसंघर्ष समिति के आह्वान पर 21 मार्च को लाखों की तादाद में प्रभावित क्षेत्र के लोग शांतिपूर्ण सत्याग्रह के लिए टूटवापनी मे एकत्रित हो गए। घटना के प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि उस दिन पूरी घाटी में एक एक कर मिलिट्री गाड़ी खड़ी थी। वे पूरी तरह से बल का प्रयोग करने के लिए तैयार थे। वहीं दूसरी ओर आदिवासियों ने सत्याग्रह जैसे लोकतांत्रिक तरीके से लोहा लेने की ठान ली थी। सेना को घुसने से रोकने के लिए महिलाएं सबसे पहली पंक्ति में खड़ी थी। पूरा समाज एक साथ खड़ा था जिस कारण सामने वाले बर्बरता का सहारा नहीं ले पाए। 22-23 मार्च को महिलाओं और पुरूषों ने अथक प्रयास द्वारा आर्मी को सलतापूर्वक रोक दिया।
हालांकि अधिसूचना द्वारा सेना के इस अभ्यास को मई 2022 तक बढ़ा दिया गया लेकिन लोगों के पुरजोर विरोध के कारण सेना अपने प्रयास में सफल नहीं हो पाई। आज भी लगातार ही यह प्रयास किया जा रहा है कि नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज अधिसूचना को रद्द किया जाए।आयोजन के अंत में हर वर्ष यह संकल्प लिया जाता है कि " क्षेत्र के प्रभावित लोग अपनी पूर्वजों की धरोहर जल, जंगल, जमीन की रक्षा हेतु जब तक पायलट प्रोजेक्ट नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज अधिसूचना रद्द नहीं हो जाती है तब तक अहिंसात्मक सत्याग्रह आंदोलन जारी रखेंगे।"