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चिच चरि हुजूर, चिच चरि...

(महुआडांड़ को समझने का एक प्रयास) भाग 1

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अंग्रेजी शासन काल के समय एक बार अंग्रेज अफसर अपने सैनिकों के साथ छेछाड़ी घाटी के दौरे पर  निकले । कई गांवों के भ्रमण के बाद वे शाम के वक्त एक गाँव पहुंचे जहां एक बूढ़ी महिला अपने घर में लकड़ी के चूल्हे में आग जलाने का प्रयास कर रही थी। उस अंग्रेज अफसर ने अपनी भाषा में उस बूढ़ी महिला से पूछा कि ‘इस गांव का नाम क्या है?’ बूढ़ी महिला को उस अंग्रेज की भाषा समझ न आई और उसे लगा कि वह अंग्रेज उससे यह पूछ रहा है कि वह क्या कर रही है।

​डॉ. संजय बाड़ा 

तब उस बूढ़ी महिला ने कुड़ुख भाषा में जवाब दिया चिच चरि हुज़ूर चिच चरि.............. अर्थात चरि (छोटी चरि लकड़ी) जला रही हूं हुजूर। उस अंग्रेज अफसर को लगा कि वह बूढ़ी महिला उस गांव का नाम बता रही है जिसके बारे वह पूछ रहा है। उस अंग्रेज अफसर ने अपने मुँह से उच्चारण में उस चिच चरि का सम्बोधन चे.. चारी के रूप में किया और बाद में यही चिच चरि, चे.. चारी होते हुए ‘छेछाड़ी’ हो गया।*

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छेछाड़ी घाटी का चित्रण 

प्रकृति की गोद में बसा यह छेछाड़ी घाटी या महुआडांड़, लातेहार जिला का अभिन्न अंग है। महुआ पेड़ की बहुलता के कारण इस क्षेत्र का नाम महुआडांड़ पड़ा होगा। प्राकृतिक रूप से छेछाड़ी की सुंदरता अभूतपूर्व है। इस छेछाड़ी ने अपने को कई प्राकृतिक आभूषणों से श्रृंगार कर सुशोभित कर रखा है। चारों ओर ऊँची पहाड़ियों से घिरी घाटी, हरे भरे घने जंगल, सर्पीली नदियों का शुद्ध जल, लंबी लंबी लताये, सखुआ एवं महुआ पेड़ की बहुलता, वन्य जीव जंतुओं के साथ विभिन्न पक्षियों की चहचहाहट से अनुगूँजीत यह छेछाड़ी घाटी सुंदर मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है। भौगोलिक रूप से छेछाड़ी घाटी एक कटोरे के समान है जिसके चारों ओर पहाड़ियों का घेरा है । बीच की समतल भूमि कई नदियों को लिए, खेत, खलियान एवं गाँव घरों के साथ आकर्षक ग्रामीण मनोभाव उत्पन्न करती है। कहा जाता है कि प्रारंभ में यह छेछाड़ी घाटी घने जंगलों से भरपूर था । जिसे यहां के आदिम पूर्वजों ने अपने निवास स्थल एवं कृषि कार्यों के लिए विकसित किया। यह स्थान चारों ओर से घने जंगल से आच्छादित था। पूर्व में नेतरहाट जंगल, पश्चिम में चिरोपाठ जंगल, उत्तर में अकशी पहाड़ एवं दक्षिण में चम्पा पहाड़ इस क्षेत्र की भौगोलिक सीमा थी। चम्पा एवं चिरोपाठ की पहाड़ियां वर्तमान छत्तीसगढ़ की सीमाओं को स्पर्श भी करती है।

 

झारखंड राज्य के रमणीय मनोरम प्राकृतिक दृश्य से भरपूर लातेहार जिला का यह अभिन्न भाग बरबस लोगो को अपनी ओर आकर्षित करता है। बहुत कम लोगो को ही पता होगा कि छोटानागपुर की रानी नेतरहाट इसी छेछाड़ी में अवस्थित है और झारखंड का सबसे ऊंचा जलप्रपात बुढा घाघ(लोध जलप्रपात) भी इसी छेछाड़ी घाटी की शोभा बढ़ा रहा है। छेछाड़ी घाटी या महुआडांड़ के नाम से प्रसिद्ध यह क्षेत्र लातेहार जिला का एक अनुमंडल है। लातेहार जिला 4 अप्रैल 2001 को अस्तित्व में आया। इससे पहले, यह झारखंड राज्य के पुराने पलामू जिले का एक अनुमण्डल था। वर्तमान में महुआडांड़ पलामू प्रमण्डल का हिस्सा है। महुआडांड़ से लातेहार की दूरी लगभग 150 किमी है । पत्रिका जनसंघर्ष के माध्यम से छेछाड़ी घाटी की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक पहलुओं को जानना एवं समझना इस आलेख का मुख्य उद्देश्य है। अभी महुआडांड़ को समझने का प्रयास बाकी है.............................

*सूचनादाता द्वारा दिये गए सूचना के आधार पर

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