


संपादकीय कलम से

प्रवीण एक्का
"वक्त का पहिया घूमा है, आया नया दौर लेकर,
आदिवासियों के रहनुमा गुजर रहें हैं, अपनी कुर्बानी देकर,
जद्दोजहद कायम है, आदिवासी अस्तित्व की पहचान में,
मेरे प्यारे मित्रों! विवेकशील बनो, संगठित रहो, संघर्षरत रहो,
बदलाव को तरक्क़ी में बदलना है हमें, एक-दूसरे का साथ देकर!"
पीढ़ी दर पीढ़ी चुनिंदा जुझारू समाजसेवियों ने अपने निजी सुख सुविधाओं को त्यागकर आदिवासी समाज के अस्तित्व को बचाने के लिये अतुलनीय योगदान दिये हैं । उन सभी आदिवासी योध्दाओं को सादर नमन करते हुये "जनसंघर्ष" मासिक पत्रिका के इस अंक में सम्पादकीय मण्डली द्वारा आपका हार्दिक अभिनंदन करते हैं। सिध्दो-कान्हू मुर्मू, चाँद-भैरव मुर्मू, फूलो-झानो मुर्मू, सिनगी दई-कईली दई और बिरसा मुंडा जी एवम अन्य, ऐसे महान आंदोलनकारी हुये हैं, जो आदिवासी समाज के हित में निःस्वार्थ हितकारी कार्य किये हैं। वाकई उनके द्वारा कृत कार्य हम सबके लिये वरदान है।
अभी हाल में दिवंगत फा. स्टेन स्वामी जी भी हमारे आदिवासी समाज के हितकर और सामाजिक सेवाओं के प्राणेता पुरूष रहे हैं, जिन्होंने आदिवासी समाज की दशा सुधारने और उन्हें दिशा दिखाने में अभूतपूर्व कार्य किये हैं। उन्हें पुलिस द्वारा महाराष्ट्र के प्रसिद्ध भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार कर लिया गया था । (अबतक आरोप सिद्ध नहीं हुआ है)। पुणे के भीमा कोरेगांव केस में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने अपनी 10 हजार पन्नों की चार्जशीट में स्टेन स्वामी जी को भाकपा माओवादी संगठन का सक्रिय सदस्य बताया था और उन पर माओवादी कैडरों के लिये फण्ड का जुगाड़ करने का आरोप भी लगाया गया था।

फा ० स्टेन स्वामी की संस्थागत हत्या के विरोध में राँची में आयोजित राजभवन मार्च
फा० स्टेन स्वामी के मरणोपरांत कोर्ट के जजों ने भी उनकी शख्शियत की तारीफ़ें की (हालाँकि NIA द्वारा विरोध दर्ज करने के बाद उन्हें यह टिप्पणी वापस लेनी पड़ी)। वे जनजातीय अधिकार कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते थे। लाभान्वित समाज जानता है कि, उनके द्वारा उन्हें क्या लाभ हुआ लेकिन वहीं दूसरी तरफ कही सुनी बातों वाला एक तबका उन्हें अपनी तरफ से निर्णायक गुनहगार मानता है। एक 84 वर्षीय बीमार और बुजुर्ग को आरोपी बनाकर कोर्ट की तारीख़ों में घसीटना और कैदी बनाकर रखना और जमानत नहीं देना "सिस्टम" पर प्रश्रचिन्ह दर्शाता है। चुनिंदा लोगों के लिये स्पेशल कोर्ट बन जाते हैं, लेकिन एक आम व्यक्ति या कार्यकर्ता के लिये शायद ऐसा सोचना भी बेबुनियाद है।
दूसरी तरफ, देश में न जाने कितने सफेदपोश विशिष्ट आरोपी मौजूद हैं, जिनमें विभिन्न धाराओं द्वारा संगीन अपराध दर्ज हैं, लेकिन जो जनसमूह स्वर्गीय फा.स्टेन स्वामी को आरोपित समझ उनपर तरह-तरह की टिप्पणीयां किये जा रहा था, वे उन सफेदपोश व्यक्तियों के प्रति मौन साधे हुये हैं। अजीब विडंबना का दौर चलाया जा रहा है, जहाँ सत्य और झूठ के बीच के अंतर को भ्रमित विद्या द्वारा परोसा जा रहा है। आप सावधान रहें, सच को रिसर्च से तलाशें और फिर अपनी बातों को रखें, इसी में बुध्दिमत्ता है और इसी से जनसंघर्ष के मुहिम को अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
साथ ही आदिवासी समाज के निःस्वार्थ कार्यकर्ताओं का साथ हमेशा दें जिससे सामाजिक अगुवाई में उनका मनोबल बढ़ा रहे और मिलकर सशक्त समाज का निर्माण हो सके।
अंत में कार्ययोजना आधारित एक अपील है, कि COVID-19 के मार्गदर्शन का अनुपालन करते हुये आगामी 9 अगस्त को "विश्व आदिवासी दिवस" अवश्य मनायें और आदिवासी एकता को पुनर्गठित और मजबूत बनाकर आदिवासी समाज के उत्थान में अपना बहुमूल्य योगदान जिम्मेदारी पूर्वक दें। धन्यवाद।
जोहार! जय आदिवासी!