



प्रवीण एक्का
संपादकीय कलम से
आपलोगों के प्यार, सहयोग और सहभागिता से “जनसंघर्ष” पत्रिका का एक और अंक लेकर हम आ गए हैं | आप सभी पाठकों को संपादकीय मंडली की ओर से “जोहार” और आभार ...
अगस्त का महीना है, और इस महीने में दो महत्वपूर्ण व् विशेष दिन मौजूद हैं | पहला 09 अगस्त जो कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित “विश्व आदिवासी दिवस” के रूप में है और दूसरा 15 अगस्त, जिस दिन हम हमारे देश का “स्वतंत्रता दिवस” मनाते हैं | आदिवासी दृष्टिकोण से देखा जाय, तो दोनों तारीखों में आदिवासी का प्रबल जुड़ाव है, और आधुनिक वास्तविकता में दोनों तारीखों की महत्ता कहीं न कहीं समानरुपी है |

9 अगस्त 2019 में टूटूवापानी में विश्व आदिवासी दिवस के मौक़े पर आयोजित कार्यक्रम
09 अगस्त “विश्व आदिवासी दिवस” की महत्ता को समझते चलें तो यह हमारी अस्तित्व, पहचान और अपने-अपने जगहों में मालिकाना स्वामित्व का बोध कराती है | लेकिन इससे पहले इस चक्रव्यूह रचित माहौल में, क्या हम अपने आप को एक सच्चा आदिवासी मानते हैं? अगर सच्चा आदिवासी मानते हैं तो स्वयं और सामाजिक हित में क्या कर रहे हैं? अगर अपने को आदिवासी कहलवाने में भी संशय है तो इसका कारण क्या है? आदिवासीगण धन्य हैं कि उनके लिये विश्वस्तरीय दिवस का निर्धारण किया गया है | मेरी जानकारी में तो शायद ही किसी अन्य समुदाय को विश्वस्तरीय दिवस मिला है | यदि आपकी जानकारी में कोई हो तो बताइयेगा ...| इतना महत्वपूर्ण दिन होने के बावजूद बहुतायत में आदिवासी भाई-बहन, बुजुर्ग या बुद्धिजीवी वर्ग इस दिवस को मानाने और सामूहिक माध्यमों द्वारा मिलकर अपने समाज के समक्ष चर्चा-परिचर्चा /कार्यक्रम का आयोजन करने में संकोचित होते हैं और किसी दूसरे की पहल का इंतजार करते हैं | दूसरी ओर कुछ जागरूख लोग बधाई के पात्र हैं, जो समय निकाल कर आदिवासी समुदाय के हित में बहुमूल्य योगदान दे रहें हैं | वर्तमान डेटा इंगित करता है कि दुनिया भर में उपयोग की जाने वाली लगभग 7000 भाषाओं में से कम से कम 40% किसी न किसी स्तर पर खतरे में हैं। जबकि विश्वसनीय आंकड़े मिलना मुश्किल है, विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि स्वदेशी भाषाएं/आदिवासी भाषाएँ विशेष रूप से कमजोर हैं, क्योंकि उनमें से कई को स्कूल में पढ़ाया नहीं जाता है या सार्वजनिक क्षेत्र में उपयोग नहीं किया जाता है। सन 2022 से 2032 तक आदिवासी भाषाओं के दशक के रूप में निर्धारित किया गया है | आप लोगों से अपील है कि ज्यादा से ज्यादा आदिवासी भाषाओं को सीखें और सिखायें |
उपर्युक्त दो महत्वपूर्ण दिनों में दूसरा 15 अगस्त का दिन महत्वपूर्ण है, यह अंग्रेजों से भारत देश की आजादी का दिन है | भारतीय इतिहासकारों द्वारा साल 1857 में मंगल पांडे को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम क्रांतिकारी माना गया है |
हालांकि 1857 की क्रांति से लगभग 80 साल पहले एक आदिवासी नायक तिलका मांझी ने, तत्कालीन अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ़ आजादी का बिगुलवाद शुरू किया था, जो असल मायनों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले क्रांतिकारी थे। भले ही हमारे इतिहास में तिलका मांझी के योगदान का कोई ख़ास उल्लेख न मिले, पर समय-समय पर कई लेखकों और इतिहासकारों ने उन्हें ‘प्रथम स्वतंत्रता सेनानी’ होने का सम्मान दिया है। महान लेखिका महाश्वेता देवी ने तिलका मांझी के जीवन और विद्रोह पर बांग्ला भाषा में एक उपन्यास ‘शालगिरर डाके’ की रचना की। एक और हिंदी उपन्यासकार राकेश कुमार सिंह ने अपने उपन्यास ‘हुल पहाड़िया’ में तिलका मांझी के संघर्ष को बताया है।
इतिहास हो या वर्तमान दशक, समय-समय पर आदिवासी समाज से ऐसे वीर सपूत मिले हैं, जिन्होंने आदिवासी समाज को “जनसंघर्ष” के माध्यम से आदिवासी समाज को नई दिशा प्रदान की हैं | चूंकि दोनों तारीखों की स्थिति को सर्वसार कर विशेष बनाने एवं आदिवासी समाज की सर्वांगीण विकास को प्रबल बनाने में प्रत्येक आदिवासी का साथ आवश्यक है । अतः आप जागरूक होकर जागरूकता फैलायें और इस अंक के सभी लेख के सार द्वारा लोगों को प्रेरित करें | निम्न चंद पंक्तियों के साथ मिलते हैं अगले मासिक अंक में.......
साल के किसी दिन से, आप भी एक शुरुआत कर दीजिये,
हो छोटा सा ही सही, ऐसे सामाजिक कार्ययोजना को अंजाम कर दीजिये,
आदिवासी सामाज नाजुक दौर से है गुजर रहा,
इसको अपना साथ देकर, मजबूती का एहसास दिला दीजिये ||
जय आदिवासी ! जोहार!!