



प्रवीण एक्का
संपादकीय कलम से
संभावनाओं के डहर में आदिवासी समाज.......
जोहार साथियों! "जनसंघर्ष" के इस मासिक अंक के साथ संपादकीय मण्डली आपका अभिनंदन करती है । इस मासिक पत्रिका के प्रति आपकी रुचि को बरकरार रखने पर खुशी व्यक्त करती है ।

दो माह शेष हैं और यह वर्ष 2021 भी बीत जायेगा । जिस प्रकार वर्ष प्रारंभ में आपने "खुश नया साल" या "हैप्पी न्यू ईयर" कहा था, क्या यह साल आपके लिये "खुश नया साल" सिद्ध हो रहा है? क्या आपका परिवार इस वर्ष उन्नति की एक सीढ़ी चढ़ने में सफल रहा है? अनेकों विपरीत परिस्थितियों को लांघकर क्या आप व्यक्तिगत और सामाजिक तौर से एक कदम उत्कृष्टता में आगे पहुंचे हैं ! आप जानते हैं कि दुःख और सुख जीवन के अभिन्न अंग होते हैं, लेकिन उन्हीं माहौल में हमें अपने लिए, अपने परिवार के लिये और साथ ही अपने आदिवासी समाज के लिये फलदायक कार्य करने होते हैं ।अच्छी बात यह है कि अभी भी हमारा आदिवासी समाज, विभिन्न क्षेत्रों में, संभावनाओं की डगर में चलता दिखाई दे रहा है । संघर्षरत दैनिक जीवन यापन के बीच राजनीतिक, सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक विचारधाराओं में परिपक्वता की नींव बनती दिखाई दे रही है ।
लेकिन आदिवासी समाज के सदस्यों को अभी भी दुनियादारी के आयामों को समझने की अच्छी खासी आवश्यकता दिखाई पड़ती है । संवैधानिक अधिकारों, मालिकाना हक, पांचवीं अनुसूची, पेसा कानून, जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) और ग्राम सभा के अधिकारों के बारे में अनेकों सभाओं द्वारा जानकारियाँ विस्तारित की जा रहीं हैं । लेकिन अभी भी अधिकतर लोग उल्लेखित नियम-कानूनों को समझने में असमर्थ हैं । एक मुहिम प्रारंभ करने की आवश्यकता है, जिसमें सरल उदाहरणों द्वारा जन जागरूकता और जानकारीयों का आदान -प्रदान हो सके और इस मुहिम को सफल बनाने के लिये जानकार, पढ़े-लिखे और प्रबुद्ध लोगों की अति आवश्यता है । आदिवासी समाज के बुध्दिजीवी वर्ग अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वाहन जितनी सजगता और सक्रियता के साथ करेंगे, हमारा समाज उतनी गति से प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होगा ।
आधुनिक डिजिटल युग में जानकारियां इकट्ठा करना, उनकी पुष्टि करना और अन्य लोगों तक पहुंचाने का काम काफी सरल हो चुका है, बशर्ते लोग व्यक्तिगत रूप से सामाजिक हित की जानकारियों को साझा कर घर बैठे ही जनजागरूकता मुहिम की अगुवाई कर सकते हैं । देखा जाता है कि लोग सोशल मीडिया में ज्यादातर मेसेज/जानकारी को बिना जाँचे फारवर्ड/अग्रसरित करने का काम ही करते हैं , जिससे भेजनेवाले और प्राप्तकर्ता दोनों के समय और ऊर्जा का ह्रास होता है ।
साथियों ! सामाजिक जागृति की शुरुआत "सही जानकारी" के आदान-प्रदान द्वारा होती है । व्यक्ति विशेष में किसी एक विषय के बारे में अच्छी जानकारी होती है, बशर्ते आप उस जानकारी को आवश्यकतानुसार जन-जन तक पहुंचा सकें ।
तो आइये सही जानकारी को बटोरते हुये, जन जागरूकता के मुहिम में अपना कर्तव्य निभायें और अपने आदिवासी समाज को बौद्धिक मज़बूती देकर उन्नत आदिवासी समाज के निर्माण में अपना बहुमूल्य योगदान दें । धन्यवाद।
जय आदिवासी!