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​प्रवीण एक्का 

संपादकीय कलम से 

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जोहार साथियों !

संपादक मण्डली की ओर से "जनसंघर्ष" मासिक पत्रिका के इस नये अंक में आपका सहृदय स्वागत है ।

इस पत्रिका के प्रति अपना प्यार बनाये रखें, और अपने सामाजिक विचारों को इस पत्रिका के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने के लिये अपने लेख, कहानी, कविता आदि को दिये गये ईमेल एड्रेस में भेजें जिससे जनजागृति की  मुहिम सफल हो सके ।

साथियों! दैनिकचर्या के जीवन में हमसब छोटे-बढ़े अड़चनों या मुसीबतों को ठीक करने के लिये संघर्षरत रहते हैं । बिना संघर्ष के जीवन में आगे बढ़ना महज काल्पनिक मात्र  है । आज मैं इस अंक में जीवन संघर्ष से संबंधित पहलुओं पर अपनी बात रखने वाला हूँ ।

देखा जाय तो समयानुसार, किसी समस्या के समाधान हेतु संघर्ष के तरीके बदलते रहते हैं । साथ ही साथ संघर्ष और उसके समाधान की समयसीमा व्यक्तिविशेष पर निर्भर करती है । मैं निम्नलिखित अवयवों को प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिसके क्रमबद्ध अनुपालन से व्यक्तिविशेष के साथ-साथ सामाजिक उत्थान में भी कारगर सिद्ध होगा:-

  1. जागरूकता

  2. ज्ञानार्जन

  3. बुलंद आवाज

  4. सही रणनीति

उपर्युक्त चार बिंदुओं को लेकर आदिवासी समाज से एक छोटा सा उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूँ । एक शादीशुदा आदिवासी बहन जोकि स्टाफ नर्स (अनुबंध में नौकरी)  के तौर पर झारखंड में कार्यरत है । उसे मातृत्व अवकाश की जरूरत थी , जब वह अपने कार्यालय में अवकाश हेतु आवेदन देने गई, तो उसे कहा गया कि सिर्फ 12 सप्ताह ही छुट्टी मिलेगी ।

जबकि प्रसूति प्रसुविधा (संशोधन) अधिनियम, 2017 नियमानुसार  26 सप्ताह  माह अवकाश निर्धारित है, चाहे संस्थान सरकारी हो या गैरसरकारी , नौकरी अनुबंध में हो अथवा स्थायी । इस बाबत याचिका सरिता कुमारी,बोकारो  के केस में  झारखंड में जस्टिस डॉ एस एन पाठक की पीठ ने कहा है, कि मातृत्व अवकाश लाभ अधिनियम -1961 की धारा 2 के तहत सभी तरह के संस्थानों पर मातृत्व अवकाश लाभ अधिनियम लागू होने का प्रावधान है । जिसमें 26 सप्ताह अवकाश मिलता है और अवकाश अवधि का वेतनमान भी दिया जाता है ।

वह चाहती तो अपने कार्यालय में कहे बातों को सुन चुपचाप रह सकती थी, लेकिन वो निश्चय की, कि अपना अधिकार लेकर रहेगी । अपने को "जागरूक" कर संघर्ष की पहली सीढ़ी चढ़ने का निर्णय लिया । फिर अन्य कार्यालयों/जगहों से मातृत्व अवकाश संबंधित चिट्ठियों, ऑफिस आर्डर एकत्रित की।  यह संघर्ष की दूसरी सीढ़ी "ज्ञानार्जन" का भाग था।

वह पुनः आवेदन और संबंधित दस्तावेजों को लेकर अपने कार्यालय गई और उसे जमा किया और अपनी पावती प्रति मांगी । यह देखकर वहां के कर्मचारी भौचक रह गये । वे शायद यह नहीं सोच पा रहे थे कि, एक साधारण आदिवासी लड़की बहुत कम समय में इतने सारे दस्तावेज के साथ तुरंत आ जायेगी । फिर वे दूसरा पैंतरा आजमाने लगे और कहने लगे कि आपको तो 6 महीने घर में रहकर ही सैलरी मिलेगा तो कुछ खर्चा पानी हमलोगों भी दीजिये, कम से कम एक महीने का सैलरी । अब यहां पर बहन ने संघर्ष की तीसरी सीढ़ी चढ़ते हुये अपनी "आवाज बुलंद" की और उन सबको जोरदार फटकार लगा दी और जोरदार तरीके से अपनी बात रखी:- "कि एक तो आप सिर्फ 12 सप्ताह छुट्टी की बात बताकर सही नियम छिपा रहे थे, और ऊपर से एक  प्रेग्नेंट महिला को कागज पत्र जमा करने के लिये परेशानी में होना पड़ा, दौड़ना भागना पड़ा और ऊपर से घूस मांग रहे हैं !! मैं तो अनुबंध में नौकरी कर रही हूं, ज्यादा बोलियेगा तो आपकी स्थायी नौकरी को भी खतरा हो जायेगा । एक मोबाइल नम्बर दिखाकर:- ये देखये Anti Corruption Bureau, Jharkhand का Whatsapp No. 9431105678  है , इनको खबर दूंगी तो मेरा कुछ नहीं होगा, बाकी आप समझदार हैं ।"  इस बुलंद आवाज से बहन ने संघर्ष से सफलता की ओर एक मजबूत कदम रखा । अब बात आती है सही रणनीति की, तो उपरोक्त तीनों सीढ़ियों को चढ़ने के साथ-साथ एक सही रणनीति की जरूरत होती है, जिसमें सही जानकारी या तथ्य इकठ्ठा करना, प्रभावी बातों का चयन और सही व्यक्ति की पहचान जहाँ से आपका काम हो सके, और सही समय पर अपनी बात रख सकें , यह सब चौथे बिंदु "सही रणनीति" का भाग है । यह सब सूत्रधार में बंध जाय तो सफल परिणाम दिखने लगता है ।

इस उदाहरण द्वारा, संघर्ष को अंजाम तक पहुंचाने का क्रमबद्ध रूप आप समझ ही गये होंगे । मुझे उम्मीद है कि, हमारे पूर्वजों ने भी संघर्ष को सही अंजाम तक पहुंचाने के लिये उपयुक्त बिंदुओं को ही अपनाया होगा । हमें भी निजी जीवन के संघर्ष के साथ-साथ सामाजिक स्तर के समस्याओं के निराकरण के लिये उपरोक्त बिंदुओं को कार्यान्वित कर, संघर्षरत रहते हुये, सफल मुकाम तक आगे बढ़ने की जरूरत है .......क्या आप तैयार हैं !!

तय करें, तैयार करें ,

कदम कदम पर है लड़ाई यहां,

कभी प्यार से , तो कभी बौद्धिक हथियार से ,

मुक़ाबला करने के लिये, खुद से खुद को तैयार करें ।।

जोहार !

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