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​प्रवीण एक्का 

संपादकीय: जनसंघर्ष की विजय सीमा रेखा 

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जोहार साथियों!

"जनसंघर्ष" पत्रिका के इस अंक को प्रस्तुत करते हुये संपादकीय मण्डली अपनी ख़ुशी व्यक्त करती है, क्योंकि हमने इस पत्रिका (मार्च अंक) के  माध्यम से आपके साथ वैचारिक रूप से जुड़कर शानदार एक वर्ष पूर्ण किये हैं। हमने इस पत्रिका की शुरुआत दिनांक 22/03/2021 को टूटवापानी, नेतरहाट जनसंघर्ष स्मृति स्थल से की थी। विगत अंकों में विभिन्न विषयों पर हमारे समाज के लेखकों व चिंतकों द्वारा सामाजिक विचारों को वाक्यों में सजाकर प्रकाशित किया गया है, जिसे आप ऑनलाइन पढ़कर विविधता में ज्ञान संचित कर रहे होंगे और उम्मीद है आगे भी इस पत्रिका से जुड़े रहेंगे।

हमें उम्मीद है कि तमाम लेख या किसी लेख/कविता की खास पंक्ति द्वारा किसी न किसी को एक वैचारिक पथ अवश्य मिली होगी। जल, जंगल और जमीन को बचाने व सुरक्षित रखने के लिये सामाजिक जद्दोजहद में विवेकशील मार्ग दर्शन में यह पत्रिका एक अच्छा साथी बनकर साथ चल रहा है। आप भी अपने विचारों को इस पत्रिका के माध्यम से प्रस्तुत करें और वैचारिक उलगुलान का हिस्सा बनें, हम आपके लेख व कविताओं का सहृदय स्वागत करते हैं ।

साथियों! धरना-प्रदर्शन, जिन्दाबाद-मुर्दाबाद के नारेबाजी का माहौल कहीं न कहीं सरकार के गलत नीतियों, उदासीनता और उपेक्षा का परिणाम होता है। जब सही नीतियों की कमी से हमें अनुकूल परिस्थितियाँ प्राप्त नहीं हो रहीं हैं, तो बेशक हमें नीति-निर्धारण भवन में सर्व सामाजिक विचारधारा के लोगों को पहुँचवाना होगा। लोकतांत्रिक तरीके से देखा जाय तो इसके जिम्मेदार भी आम इंसान हैं और भुक्तभोगी भी आम इंसान ही हैं ।

अब पूछिये...... कैसे? 

 

हाँ, तो इसके प्रतिउत्तर में एक बात बताना चाहूंगा कि गाँव तथा समाज के वर्तमान व भविष्य की योजनाएं विधानसभा/लोकसभा में होती है और  लोकतंत्र के महापर्व अर्थात चुनाव में आप ऐसे व्यक्ति को चुनते हैं जो कि आपका हितकर नहीं होता या चुनाव परिणाम पश्चात अपने राजनीतिक पार्टी के अनुसार बदल जाता है, तो क्या वह आपके समाज और जगह मुताबिक हितकर योजनाओं का लाभ पहुँचा पायेगा!  शायद नहीं। दूसरी बात, आपके चुनाव आंकलन पर यह निर्भर करता है कि आप किसी पार्टी के भक्त-चमचे तो नहीं या फिर झण्डा दोलक तो नहीं? साथियों! अपनी माटी के अनुरूप सामाजिक हित में वोट की ताकत को प्रस्तुत करेंगें तो यकीनन बदलाव भी होगा और विकास भी होगा।

साथियों! संघर्ष चाहे निजी जीवन की हो या सामाजिक उत्थान का - विचारधारा, उद्देश्य, मार्गदर्शन और उपयुक्त परिश्रम के गठजोड़ से सफलता अवश्य मिलती है। यह देखा जाता है कि आदिवासी समाज के लोग अपने हक अधिकार की जानकारी हेतु आतुर नहीं होते और अपने छोटे-मोटे सरकारी या परियोजनाओं से सम्बंधित कार्य हेतु दूसरे समुदाय के लोगों में जरूरत से ज्यादा आश्रित होते हैं। अगर आप अपने परिवार और समाज के कार्यों के लिये सही जानकारी इकट्ठा करने से दूर रहेंगे और हमेशा दूसरों के माध्यम द्वारा घर, परिवार और समाज के विकास की कल्पना करेंगे तो यकीनन आपका समाज अप्रत्यक्ष रूप से गुलामी और पिछड़ा बना रहेगा । इन सब बातों से बहुत जन वाक़िफ हैं, अपितु सिर्फ जानकारी रखकर पहल नहीं करेंगे तो आपका ज्ञान महज पुस्तकालय में रखे किताबों की तरह रहेगा।

स्वयं द्वारा एक "पहल" बदलाव की पहली सीढ़ी होती है। एक-एक साथी अपने परिवार और गाँव को उन्नत बनाने के कार्ययोजना में पहल करे तो यकीनन बहुत जल्द हमारा समाज प्रगतिशील से विकसित बन जायेगा।

पहले चरण में गाँव के सभी लोग एक साथ मिलकर अपने -अपने ज़मीनों के कागजात को सुदृढ़ करें। सामूहिकता में कार्य को सम्पन्न करने का पहल करें और फिर दूसरे चरण में ग्राम सभा के माध्यम से विभिन्न योजनाओं को लेकर लागू करवाने का कार्य करें। छोटी-छोटी समस्याओं के निदान में आपकी भागेदारी ही आने वाले कल का निर्धारण करती है।

साथियों! सरल वाक्यों में जनसंघर्ष के सभी लेखक अपनी बात रखने का प्रयास करते हैं, उम्मीद करता हूँ कि आप एक कदम विकास की ओर अवश्य आगे बढ़ेंगे। धन्यवाद।

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