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संपादकीय: प्रकृति ही सब कुछ है 

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​प्रवीण एक्का 

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जोहार साथियों !

"जनसंघर्ष" पत्रिका के इस अंक में सम्पादकीय मण्डली आपका हार्दिक अभिनंदन करते हैं। इस पत्रिका के लेखों, कविताओं के माध्यम से आदिवासी समाज में बौद्धिक चेतना और विवेक प्रदान करना ही हमारी प्राथमिकता है।

भावपूर्ण विचारों को लिखना और अच्छी किताबों या पंक्तियों को पढ़ना नई सोच के साथ बेहतर जीवन जीने का अच्छा माध्यम और मार्गदर्शक है। आप भी अपने सामाजिक विचारों को लेख या कविताओं के माध्यम से हमें भेजें जिसे हम इस पत्रिका के माध्यम से लोगों तक पहुँचा सकें।

इस अंक के संपादकीय कॉलम में "प्रकृति ही सबकुछ है" वाक्य पर व्याख्यान प्रस्तुत करते हुये आदिवासी, प्रकृति, व्यापक समस्या और प्राकृतिक समाधान पर  ध्यान आकर्षण करना चाहूँगा।

 

साथियों! प्राकृतिक महापर्व, जो कि "करम पर्व" के नाम से हमलोग जानते हैं और मनाते हैं, हर्षोल्लास और आनंदित मन से सम्पन्न हुआ। यह त्योहार भाद्रपद (भादो) महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है, जब खरीफ फसल(धान) की बुआई का काम खत्म हो जाता है तो पूरा समाज मिलकर अच्छी फसल की कामना करते हुए, विधिवत पूजन और नाच-गाकर उत्सव मनाता है।

बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु और समृद्धि के लिये व्रत रखकर पूजन-अर्चन करती हैं। लड़कियां/ युवतियां सात तरह के अनाज को अपने घर में मिट्टी के बर्तन में बालू डालकर उगाती हैं। प्रतिदिन स्नान करके उसमें जल देती हैं, जिससे अनाज उगता है और इसे ही "जावा" कहा जाता है। करम पर्व में जावा एक प्रमुख पूजन सामग्री है, जिसे करम पूजा के बाद सभी बहनें गीत गाकर पुरुष वर्ग के कानों में खोंसती/लगाती हैं और अभिवादन करतीं हैं। साथ ही ढोल, नगेड़ा, मांदर लेकर करम डाली को काटकर लाना, आँगन या अखड़ा में स्थापित करना और पाहान द्वारा पूजन-विधि के बाद महिला-पुरूष, युवा और बच्चों के साथ रात भर ढोल-मांदर की थाप पर नाचते-गाते हैं, और सुबह सूर्याेदय से पहले करम की डाली को नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है। इसमें एक महत्वपूर्ण बात है कि करम डाली को आँगन में स्थापित कर हम करम डाली के साक्ष्य में भाई-बहन के स्नेह और पवित्र प्रेम में करम राजा/पाहान/वरिष्ठ व्यक्ति द्वारा प्रेरणात्मक कहानी सुनते हैं। करम डाली के विसर्जन उपरांत उस डाली को अपने -अपने धान की खेतों में गाड़ा जाता है, जिससे फ़सल में कीट नहीं पड़ते और फसल अच्छी होती है। इस प्रकार विधिवत करम डाली को आँगन तक लाना, स्थापित करना, पूजन करना और विसर्जन करने तक की विधि-विधान में पवित्र "करम डाली" अर्थात प्रकृति ही सबकुछ है।

सच है अगर हम गौर फरमायें और सोचकर देखें कि अनोखे तारामण्डल से घिरा यह ब्रह्माण्ड और कहीं किसी कक्ष में मौजूद हम पृथ्वीवासी, परिकल्पना की जाय तो अदभुत ही अदभुत है। आकाश, जमीन, महासागर, नदियां, पवन इत्यादि-इत्यादि क्या-क्या नहीं मिला हम पृथ्वी वासियों को! एक बात याद दिलाना चाहूँगा हम खाली हाथ  इस धरती पर आये हैं ,और यह धरती और यहां की प्रकृति हमको जीवन देने का साधन मुहैया कराती है। आज हमें जो भी चीज प्राप्त हैं सभी प्रकृति अर्थात इस पृथ्वी से ही प्राप्त हुआ है। कुछ चीजों को सीधे तौर पर उपयोग किया जाता है, और कुछ चीजों को अनुसंधान कर प्रयोग किया जाता है।

हम आदिवासी लोग "जोहार" कहकर सबका अभिवादन करते हैं जिसका शाब्दिक अर्थ होता है -"सबका कल्याण करने वाली प्रकृति माता की जय हो"। आधुनिक काल में प्रकृति द्वारा मिले असंख्य उपहारों को बहुत कम ही लोग आनंदपूर्वक स्वीकार कर और उसकी महत्ता समझकर, अपने छोटे-बड़े कष्टों के बीच तरीके से जीवन-यापन करते हैं। बाकी लोग न जाने किस आपा-धापी में उलझ कर जी रहे हैं, जोकि प्रकृति और इस पृथ्वी का कम आनंद ले रहे हैं। शायद वे जीवन और प्रकृति को नजदीकी से समझने में विलंब कर रहे हैं ऐसा प्रतीत होता है। आदिवासी समाज प्रकृति से जुड़ा हुआ समुदाय है और यह जानता है कि इस पृथ्वी में जीवन भी यहां के प्रकृति के अनुरूप ही है। उदाहरणत: पृथ्वी में तकरीबन 70% भाग पानी से घिरा है और हमारे प्राकृतिक शरीर में भी करीब 70% जल संचय रहता है। यह महज संयोग नहीं अपितु प्राकृतिक जुड़ाव व संरचना है। हमारे सभी समस्याओं का हल यहीं पृथ्वी/ प्रकृति पर है , बस बारीकता से देखने समझने की बात है।अन्न, जल और वायु तो मिलता ही है, साथ ही जीवन में संतुलन, नम्रता/विनम्रता और निरंतरता का बोध भी पृथ्वी/प्रकृति ही कराती है। उपरोक्त बातों की पुष्टि पृथ्वी के अपने अक्ष में 23.4 डिग्री के झुकाव, संतुलन और गतिशीलता से होती है।

आप जब कभी भी किसी परेशानी या मुसीबत में हों तो अपनी उन दिक्कतों को प्रकृति से मेल कराने की कोशिश करें, यकीनन समाधान प्राप्त होगा, क्योंकि प्रकृति ही सब कुछ है।

जोहार !!

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