



एक कदम गाँव की ओर: ग्वालखाड़ भ्रमण
बिनोद गुरुजी


जनवरी के माह में अपने देश भारत के उत्तरी छोर पर कड़कती ठंड के साथ, झारखण्ड राज्य का मौसम और भी सुहावना हो जाता है। ठंड के साथ हल्की धुप का एक अलग ही मजा आता है। इस समय पर्व त्योहार और शादी-लगन का समय रहता है। नये साल के शुभारंभ के साथ प्रकृति के उपहार नदी-नाले, झरने, जंगल-पहाड़ों की तराई में जहाँ बूढ़े से लेकर जवान तक, सभी वनभोज के साथ मौज-मस्ती करते हैं। और इस समय युवाओ की चहल-पहल काफी रहती है। इसी दौराण बहुत सी दुर्घटना होती रहती है और कई मौत के आगोश में समा जाते हैं। नशे और मोटर बाइक में बेवजह तेज गति से घूमने, मोबाईल में व्यस्त, सेल्फी लेने में व्यस्त, फेसबूक पर युवाओं को आर्कषक करने वाले फ़ोटो अपलोड करने में व्यस्त, और तो और, कई लैला-मजनू लोगों की नजरों की परवाह किये बग़ैर प्यार का इजहार करने में मशगूल, इन युवाओं को जागृति मंच के युवा साथियों से सीखने की जरूरत है।
आदिवासी जागृति मंच, महुआडाँड़ के युवा सदस्य विगत कुछ वर्षों से गाँव के गरीब बेसहारा लोगों के लिए बड़े शहरों में रहने वाले सक्षम लोगों से दान स्वरूप कपड़े या अन्य चीजों को संग्रह करते और उन लोगों तक पहुँचाते जो जरूरतमंद हैं। इस तरह की व्यवस्था और सहयोग करने में सिसीलिया जी की अहम भूमिका रहती है। इसी क्रम में मेरे, बिनोद खालखो, अनुग्रह मिंज, दीपांशु मिंज और कीशुन की अगुवाई में पोरतास, नीरज, नीतिश,नीलेश, जेवियर, विजय और रिचर्ड ने अपना समय निकाल कर अपने निःस्वार्थ भाव से यह नेक कार्य करने का मन बना कर, पूरे जोश के साथ उस इलाके की ओर चल पड़े जहाँ लोग जाना नहीं चाहते हैं।
लातेहार जिला के महुआडाँड़ प्रखण्ड से महज 15-20 किमी की दूरी पर बसा एक गाँव है ग्वालखाड़, जो जंगल पहाड़ों के बीच बसा है। जहां कोरवा, ब्रिजिया आदिम जनजाति के लोग रहते हैं वे काफी सरल ईमानदार स्वभाव के होते हैं, लेकिन आज के हिसाब से रहन-सहन काफी पिछड़ा और गरीब अवस्था में जीवन यापन कर रहे हैं। जनवरी माह के कड़कड़ती ठंड में बच्चों के पास ठीक से कपड़े नहीं हैं और न ही पैर में चप्पल। ये अपनी गुजर- बसर वनोत्पाद और थोड़ी बहुत खेती बारी से करते हैं। यहाँ रास्ता, बिजली, पानी स्वस्थ, शिक्षा का बेहद आभाव है। आज भी यहाँ के लोग प्रकृति द्वारा प्रदत झरना के पानी पर निर्भर हैं।
जहां जाने के लिए घाटियों में बने सदियों पुराने झाड़ियों के बीच, उबड़-खबड रास्ते़ से होकर जाना पड़ता है। जाने के क्रम में कई बार हमने अपनी मोटर साइकिल से उतरकर पैदल चले, जहाँ तक संभव हो जाने के बाद, अपनी सवारी छोड़ अपनी गन्तव्य स्थान पहुँचे। लेकिन प्रकृति की छँटा देख कर कुछ पल हम अपनी थकान को भूल गये।
सर्वप्रथम गाँव घुसने से पहले, रास्ते में उनके पूजा-स्थल जिसे हम सरना स्थल भी कह सकते हैं, उसका दर्शन किया। उसका दर्शन कर आगे हम खेत के पगडंडी के सहारे आगे बढ़े, जंगलों के बीच कुछ-कुछ दूरी पर मिटटी और खपड़े के घर दिख रहे थे। हमे देखकर आँगन में खेलने वाले बच्चे डर से अंदर घुस गये। बाद में उनके माता-पिता के आने पर वे भी मुस्कुराते डरे सहमे हमारे पास आये। हम सभी ने गाँव के अन्य लोगों से मुलाक़ात की और हमारे साथियों के द्वारा जो भी सामग्री - कपड़े, साबून लिया गया था उन्हे प्रदान किया गया। सभी ने उस भेंट को स्वीकार करते हुए धन्यवाद दिया। साथ ही हम बच्चों को कुछ चाॅकलेट देकर बात करने की कोशिश करते रहे, पर उनके चेहरे पर केवल प्यारा सा मुस्कान था। इस मुलाकात के दौरान ये भी पता चला कि जहां हम खड़े हैं, इसी रास्ते से रात को हाथी आकर एक व्यक्ति के घर को ढह दिया, जो काफी गंभीर विषय था। सुनने में आया कि वनकर्मी अपने संज्ञान एवं मुआवजा कारवाई के लिए आये थे, अब ये देखना है कि उस गरीब को कब तक मुआवजा मिलेगा?
सूरज के ढलने के साथ हम गाँव छोड़कर नीचे के रास्ते से उतरने लगे, क्योंकि देर शाम वहाँ पर रूकना ठीक नहीं था क्योंकि इन रास्तों पर जंगली जानवरों से अचानक मुलाकात होती रहती है। और यह एक नक्सली क्षेत्र के तौर पर भी जाना जाता है। इन सब कार्यों को करने के बाद दिल में अलग सा सुकून मिला, पर यह सोचने को मजबूर थे कि आज जहाँ लोग चलते-चलते मोबाईल में बातें कर रहें हैं और आज देश में बड़े-बड़े गरीबी उन्मूल योजना, शिक्षा और स्वस्थ्य कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, आवासीय योजनायें चालाये जा रहे हैं, न जाने कितने गरीबों, आदिवासियों के नाम पर योजनायें चलाये जा रहें हैं, वे किनके लिए है? क्या सरकार, क्या नेता, क्या प्रशासन, सभी क्या कर रहे हैं? समझ से परे है कि ये गरीबी हटाने की बात करते हैं या सीधे गरीबों को ही हटाने की बात करते हैं। केवल वोट पाने के लिए उस गरीब या उस गाँव के विकास की बातें करते हैं। वोट पाने के बाद सारा का सारा सपना ही रह जाता है। जहाँ देखो दिखावा, बेईमानी और भ्रष्टाचार। पर इसकी जिम्मेदारी सबकी है, न केवल सरकार की। हम जनता ही इसके जिम्मेदार। हम स्वंय हैं क्योंकि अपनी वोट एक बोतल शराब और पैसों के लिए बेचते हैं। जिस दिन हम ठान लें कि धर्म, जाति के नाम पर वोट नहीं करेंगें। हम सिर्फ और सिर्फ शिक्षा, रोजगार, बिजली, पानी, स्वस्थ्य के नाम पर वोट करेंगें, तभी व्यक्ति, गाँव, समाज, राज्य एवं देश का विकास होगा।
अपनी कलम को विराम देते हुए, मेेरे प्यारे युवाओं से कहना है कि दुनिया की चार दिन की चांदनी में अपना जवानी बरबाद न करें। इस मोह-माया से दूर रहकर वह नेक कार्य करें जिसे दुनिया याद करे, क्योंकि आज का कार्य, कल का भविष्य सुनिश्चित करेगा।
जोहार!