


ग्रामीण आदिवासी बच्चे कैसे अंग्रेजी को रुचिकर बना सकते है

मुकुल टोप्पो
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आज के समय में बेहतर करियर ग्रोथ के लिए अपनी मातृभाषा जानने के साथ-साथ अंग्रेजी सीखना जरूरी नहीं बल्कि अनिवार्य हो गया है। ग्रामीण क्षेत्र के आदिवासी बच्चों के लिए यह बात आज प्रासंगिक होती दिखलाई देती है। क्या हमें अंग्रेजी से डर लगता है या हम इसे सीखना नहीं चाहते। ये कुछ आवश्यक प्रश्न है। जिनका उत्तर ढूढ़ना आवश्यक है। अंग्रेजी विषय की महत्ता समझते हुए इसे रुचिकर विषय के रूप में स्थापित कर इसे सीखना पढ़ना वर्तमान समय की मांग है। हम सभी जानते है मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जिसे सब जीवों में श्रेष्ठ होने का दर्जा प्राप्त है। उसकी श्रेष्ठता का परिचय हम उसके विचार और कार्य प्रणाली में देखते है।यदि कोई मनुष्य प्रकृति प्रदत्त मस्तिष्क का कार्य में प्रयोग न करता हो, न ही विचार कर पाता हो तो वह व्यक्ति अर्धमृत जीव परिभाषित किया जाता है। अर्थात जिस मनुष्य के पास दिमाग होते हुए भी उसका प्रयोग न करता हो वह मनुष्य मृत व्यक्ति के समान है । पूर्व में आदिमानव का जीवन पूर्ण रूप से जंगलों पर निर्भर रहता था। लेकिन धीरे धीरे उसी चिंतनशील और तार्किक बौद्धिक क्षमता के बल पर परिवर्तित और व्यवस्थित परिवेश अथवा समाज स्थापित करने में कामयाब होता गया। लेकिन आज भी समाज के कई वर्ग अपनी आवश्यकता की पूर्ति करने के लिए चुनौतियों का सामना करते है। इसमें उनकी विवशता भी दिखलाई पड़ती है। प्राचीन समय से ही आदिवासी समाज सुसंस्कृत रहा है।आदिवासी समाज अपने को आदिम जाति के वंशज होने पर भाग्यशाली मानता है और उनके द्वारा प्रदत्त परंपरा और संस्कृति का संवहन दर पीढ़ी दर पीढ़ी करता रहा है।
आज के वर्तमान युग में आदिवासी समाज कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। आज यदि शहर के आदिवासी बच्चे अपनी मातृभाषा भूलते जा रहे है तो दूसरी तरफ ग्रामीण आदिवासी बच्चे इस आधुनिक युग में अपने आप को प्रतिस्थापित करने के लिए अंग्रेजी जैसी भाषा को सीखने के लिए जदोजहद कर रहे है अथवा इससे दूर भाग रहे है। प्रायः ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे हिंदी मीडियम के स्कूलों में दाखिला लेते है औऱ आरंभ से ही अंग्रेजी जैसी भाषा को अधिकांश बच्चे डर और हिचक के कारण उसमें रुचि नहीं ले पाते है और उससे दूर भागते चले जाते है। यदि आरम्भ से ही अंग्रेजी भाषा को रुचिकर बनाया जाय तो सम्भवतः ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे इसमें और बेहतर होते चले जायेंगे।
क्या सच में भाषा व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण है? इसका उत्तर यह है कि आज के इस भौतिकतावादी और प्रौद्योगिकीय संस्कृति में भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस तरह की संस्कृति विशेषकर विकसित देशों में देखने को मिलते हैं, जिसे समझने और अध्ययन करने के लिए भाषा का ही प्रयोग किया जाता है। वैश्विक स्तर पर अंग्रेजी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जा चुका है। जिसकी समझ और प्रचलन जितना व्यापक है, उसे सीखना कई मायनों में आसान और महत्वपूर्ण हो सकता है।
भाषा स्वयं ही किसी क्षेत्र विशेष तक सीमांकन करती है। उसी सीमित दायरे में "वह" "मैं" और "आप" रहते हैं अर्थात भाषा इन्हीं तीनों के बीच खेलती है, वार्तालाप कराती है। जिस तरह से समाज में रहने वाले लोग अपनी जरूरतों को पूरा करने में बाध्य रहते हैं; भाषा समाज में उन्हीं की "स्थिति" और "गतिविधियों" का जिक्र करती है।
सामाजिक दर्जा और स्थिति के आधार पर भाषा व्यक्ति के गुण (character, or quality) और स्थिति ( status or situation) की व्याख्या करती है।
जैसे- वह एक ईमानदार व्यक्ति है - He is an honest person,( व्यक्ति के गुण का जिक्र है);
वह एक अच्छा आदमी है - He is a good man,(इस वाक्य में भी व्यक्ति का गुण का जिक्र है)
स्थिति के आधार पर, उदाहरण:
वह एक राजा है - He is a king,
वह बीमार है - He is sick,
किताब टेबल पर है - Book is on the table,
वह गरीब है -He is a poor man.
उपर्युक्त सभी वाक्यों में व्यक्ति या चीजों की स्थिति का जिक्र किया गया है।
गतिविधि के आधार पर, उदाहरण के लिए
विनय दौड़ता है - Vinay runs.
विनय तेज दौड़ता है - Vinay runs faster.
विनय रोज तेज दौड़ता है - Vinay runs faster everyday.
विनय रोज सुबह तेज दौड़ता है - Vinay runs faster everyday in the morning.
विनय रोज सुबह 5 बजे तेज दौड़ता है - Vinay runs faster everyday in the morning at 5 a.m.
विनय रोज सुबह 5 बजे अच्छे स्वास्थ्य के लिए तेज दौड़ता है - Vinay runs faster everyday in the morning at 5 a.m. for better health or Vinay runs faster every morning at 5 a.m. for better health.
इस तरह व्यक्ति के कार्य करने की रीति जैसे क्या करता है, कैसे करता है, कब करता है, कितना दिन करता है, क्यों करता है, का जिक्र किया गया है। समय तथा काल के अनुसार भी वाक्य का विश्लेषण करके भाषा सीखा जा सकता है।
उपर्युक्त बनाए गए भाषा सीखने के आधार में व्यक्ति के "स्थिति" तथा "गतिविधि" का अवलोकन तथा वाक्य-विश्लेषण करके उसे आसानी से शुरुवाती तौर पर सीखा जा सकता है। हिंदी वाक्य विश्लेषण में साधारणतया : कर्ता के बाद कर्म और फिर क्रिया एकसाथ सुसज्जित रहती है। अंग्रेजी में थोड़ा बदलाव देखने को मिलता है जिसमें कर्ता के बाद क्रिया फिर कर्म क्रमश: व्यवस्थित रहते हैं,( subject + verb form + object)। इस तरह हिंदी भाषा का अनुवाद अंग्रेजी भाषा में करने के लिए कर्ता, क्रिया और कर्म सम्बन्धित शब्दों का संग्रहण करके आसान बनाया जा सकता है। कर्म का भावार्थ आस पास के चीजें जैसे खाने पीने की चीज, पहनने ओढ़ने की चीज, अर्थात वातावरण में मौजूद चीजों से है। अंग्रेजी और हिंदी के शब्द संग्रहण तथा इसकी वृद्धि करने के लिए Internet जैसा माध्यम काफी मददगार साबित हुआ है। हालांकि, अंग्रेजी सीखने के लिए उपन्यास, कहानी किताबें, तथा अखबार भी काफी मदद करती है। वैसे तो अंग्रेजी अंग्रेजी व्याकरण की किताबों से सीखा जा सकता है, लेकिन शुरुआती समय में अवलोकन तथा विश्लेषण को आधार बना कर, अध्यापकों का भी मदद लेकर आसान बनाया जा सकता है।
वर्तमान परिस्थितियों में अंग्रेजी भाषा की महत्ता एवं इसकी उपयोगिता सर्वाधिक है । अपनी मातृभाषा के साथ साथ यदि अंग्रेजी की अच्छी जानकारी हो तो भविष्य में इसके परिणाम बेहतर हो सकते है। यदि आरंभ से ही अभिभावकों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया जाय तो बच्चे भी इसे सीखने में रुचि लेंगे। याद रखें कोई भी विषय कठिन नहीं होता उस विषय को कठिन अथवा सरल बनाने की जिम्मेदारी हमारी होती है। ग्रामीण क्षेत्र के आदिवासी बच्चे यदि अंग्रेजी विषय में अपनी रुचि दिखा कर इसमें अपनी पकड़ अच्छी तरह बना लेते है तो भविष्य में उनके लिए बेहतर अवसर उपलब्ध होंगे एवं वे बाहरी दुनिया के साथ आसानी से घुलमिल सकेंगे।