


खड़िया लोककथा में जीवन संसार (भाग १)

रीबा वाणी तिर्की
लोक कथा किसी जाति या जनजाति या समुदाय की जीवन शैली को दर्शाती है। जिस जाति का जीवन जैसा होगा, उसकी लोक कथा भी वैसी ही होगी। लोक कथाओं के माध्यम से लोग अपनी संस्कृति के संबंध में बहुत सी नई बातों को सीखते हैं। जनजातीय समाजों में लोक कथाएँ बच्चों को शिक्षा देने का साधन है। इन समाजों में लोक कथाओं के माध्यम से युवा गृह में युवक युवतियों को जनजातीय अनुशासन, सामाजिक न्याय, पारस्परिक उत्तरदायित्व और सामाजिक नियंत्रण के संबंध में शिक्षा दी जाती है। अतः लोक कथा उस जाति का दर्पण भी हो सकती है। लोक कथा आदिम काल से परंपरागत रूप में प्राप्त मान्यताओं, संस्कारों और धार्मिक अनुष्ठानों की व्याख्या करती है। यह प्राचीन विश्वासों और संस्कारों इत्यादि को मान्यता भी प्रदान करती है। लोक कथा प्रकृति और मनुष्य की मूलभूत एकता को भी स्पष्ट करती है। लोक कथा किसी
भी जाति या जनजाति की प्राकृतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक और सामाजिक – सांस्कृतिक वस्तुस्थिति को समझने और समझाने में मदद करती है।
मानवशास्त्र के संदर्भ में मानव जाति समुदाय की उत्पति और विस्तार को समझने में लोक कथा मदद करती है। लोक कथा विभिन्न मानव समुदाय की संस्कृति को समझने में मदद करती है। मानवशास्त्री किसी भी जाति या जनजाति की जीवन घटना, परिस्थिति, हर्ष- विषाद की वास्तविकता, उत्पति इत्यादि को समझाने के लिए लोक कथा का प्रयोग करता है। लोक कथा संसार की प्रत्येक भाषा और संस्कृति में प्रचलित है; जिसका मानवशास्त्र अध्ययन करता है तथा मानव के सांस्कृतिक रूप को समझने का प्रयास करता है।
खड़िया जनजाति भारत की एक प्रमुख अनुसूचित जनजाति है। झारखंड के लगभग 20 जिलों में खड़िया जनजाति निवास करती है। इनकी जनसंख्या सबसे अधिक सिमडेगा और गुमला जिला में है तथा सबसे कम गोड्डा जिला में है। प्रजातीय दृष्टिकोण से खड़िया जनजाति को प्रोटो – औस्ट्रोलोएड समूह में रखा जाता है। खड़िया जनजाति के तीन वर्ग पाये जाते हैं – पहाड़ी खड़िया, ढेलकी खड़िया और दूध खड़िया।

खड़िया जनजाति के जीवन से संबन्धित कई लोक कथा प्रचलित है जो उनके सम्पूर्ण जीवन की मार्गदर्शिका भी है। जन जातीय लोक कथा में देवी – देवता, भूत – प्रेत, राजा – रानी, पशु – पक्षी, पेड़ – पौधा, नदी, पहाड़, समुद्र, गोत्र, टोटम, वंश, परिवार, समाज के नायक इत्यादि के संबंध में अनेक कथाएँ आती हैं। वर्तमान अध्ययन खड़िया जनजाति के लोक कथाओं से संबन्धित है। अतः मानव शास्त्रीय दृष्टिकोण से खड़िया लोक कथा का संग्रह प्रस्तुत करना चाहती हूँ। खड़िया जनजाति की इन लोक कथाओं का वर्णन विभिन्न खड़िया बुजुर्गों ने किया है। यह अध्ययन गुमला जिला के पालकोट प्रखण्ड के सारूबेड़ा ग्राम के खड़िया जनजाति पर आधारित है।
खड़िया लोक कथाओं को चार भागों में बाँट सकते हैं :-
1. प्राकृतिक लोक कथा
2. ऐतिहासिक लोक कथा
3. धार्मिक लोक कथा
4. सामाजिक – सांस्कृतिक लोक कथा
1. प्राकृतिक लोक कथा :
(क) पृथ्वी की सृष्टि : - आरंभ में आकाश मण्डल में केवल पानी था जिस पर पोनोमोसोर, सखी गोसाई, डकाई रानी और शेम्भु राजा रहते थे। सुनसान जगह उन्हे अच्छा नहीं लगा इसलिए उन्होने सोचा की पृथ्वी की रचना की जाये। पोनोमोसोर ने जल का मंथन किया, जिस से जल जम कर दही बन गया, दही का मंथन कर उन्होने घी निकाला। फिर घी को पका कर घड़े में रखा और इस घड़े को पानी में रखा। फिर पोनोमोसोर ने जल सूअर की रचना की और उस से कहा – “ जल में प्रवेश करो और घी की रोटी ऊपर निकालो।" सूअर ने जल में प्रवेश किया और घी की रोटी को दाँत से ऊपर फेंका। पोनोमोसोर ने उसे सात टुकड़ों में विभाजित किया जो जल – थल के उपविभाग हैं।
पोनोमोसोर ने एक पाट ( जिसे हल में ठोंका जाता है ) बना कर पृथ्वी पर ठोंका। इस से जमीन का कुछ भाग ऊपर उठ गया जो पहाड़ कहलाया। घी की रोटी पर पोनोमोसोर ने विभिन्न जीवों को उत्पन्न किया। सबसे पहले उसने जोंक की रचना की। जोंक घी की रोटी खाकर मल त्यागने लगी, इस मल का ही बड़ा हिस्सा छोटी पहाड़ी बन गया। इसके बाद पोनोमोसोर ने केंकड़ा की रचना की और उसे पृथ्वी की खोज करने का आदेश दिया। केंकड़ा ने जल के अंदर घुस कर पृथ्वी को इस तरह फेंका कि पृथ्वी दो टुकड़ों में बंट गई । पहला टुकड़ा पृथ्वी और दूसरा टुकड़ा चंद्रमा कहलाया। पृथ्वी अब भी जल से भरी थी जिसे सुखाने के लिए सूर्य, तारे और अन्य ग्रहों कि रचना की गयी। इसके बाद पृथ्वी पर पोनोमोसोर ने घास – पात, पेड़ – पौधों और विभिन्न जीव – जंतुओं की भी रचना की।
(ख) मनुष्य की सृष्टि : - पोनोमोसोर ने एक पंखदार घोड़े की रचना की जो हवा में उड़ सकता था। फिर उसने मानव की दो मूर्तियाँ बनाई और उन्हे सुखाने के लिए धूप में रखा। घोड़ा उड़ता हुआ आता था और मूर्तियों को पैरों से कुचल डालता था। तीन दिन तक ऐसा ही होता रहा। इस घटना से पोनोमोसोर क्रोधित हो गए और कांटे की एक लगाम बनाई। फिए घोड़े पर सवार होकर उसे खूब दौड़ाया। घोडा थक कर चूर – चूर हो गया। वह मुंह से फेन उगलने लगा और मर गया। इसके बाद पोनोमोसोर ने फिर से नर – नारी की दो मूर्तियाँ बनाई और उसे बरगद पेड़ की खोढर में रखा। पेड़ से बरगद का दूध मुंह में टपकने से मूर्तियाँ सजीव हो गई। वे पहाड़ो की खोह में बसने लगे तथा कंद – मूल खाकर जीने लगे। पोनोमोसोर ने उन्हे संतान प्राप्ति का वरदान दिया।
(ग) कुत्तों की सृष्टि : - मानव मूर्तियों की रक्षा करने के लिए पोनोमोसोर ने चांवरा – भांवरा नामक दो कुत्तों की रचना की और उन्हे अकवान के पौधे पर छिपा दिया। जब कुत्ते भौंकते थे तो पोनोमोसोर को पता चल जाता था कि घोड़ा आ गया है। घोड़ा को मार डालने के लिए पोनोमोसोर ने कुत्तों को एक तलवार दिया। जैसे ही दूसरे दिन घोड़ा आया, कुत्ते भौंके और उन्होने घोड़े के पंख को काट दिया। तब से घोड़ा धरती पर चलने लगा और मानव सवारी बन गया।
(घ) पक्षियों की उत्पति : - पोनोमोसोर ने भयंकर आँधी भेजी जिस से वृक्षों के पत्ते आकाश में उड़ गए और चिड़ियों में बदल गए बड़े पत्ते चील, गिद्ध, सारस इत्यादि बन गए और छोटे पत्ते कबूतर, मैना , तोता इत्यादि बने। मानव ने छोटे पक्षियों को मार कर खाना शुरू कर दिया।
(ङ) मनुष्यों का विनाश : - मांस भक्षक पक्षी पोनोमोसोर को तंग करने लगे और उनसे अधिक मांस की मांग करने लगे। मनुष्य भी मांस खाकर उदंड हो गए थे। इससे पोनोमोसोर अप्रसन्न हो गए और उन्होने धरती से मानव को मिटा देना चाहा।
(च) जलप्रलय : - मानव जाति को नष्ट करने के लिए पोनोमोसोर ने जलप्रलय भेजा। पक्षी तो आकाश में उड़ गए लेकिन मनुष्य बाढ़ में डूब मारे। केवल कुछ लोग थे जिन्होने अपने को गुंगु से ढक लिया और पहाड़ों पर चढ़ कर अपने प्राणों की रक्षा की।
(छ) अग्नि वर्षा : - जब मानव ने पोनोमोसोर को फिर से अप्रसन्न किया तब पोनोमोसोर ने मानव जाति को पृथ्वी से नष्ट करने के लिए बारह वर्षों तक अग्नि वर्षा किया। एक बार तो लगातार सात दिनों तक अग्नि वर्षा हुई। पृथ्वी से मानव जाति नष्ट हो गई। केवल दो भाई – बहन बच गए। वे दलदल जमीन पर बर्तन माँजने गए थे, तभी शेम्भु राजा और डकाई रानी ने उन्हे छिपा लिया और आदेश दिया – "टोकनी से अपना सिर ढक लो।" उन्होने अपना सिर ढक लिया और वे दोनों भाई – बहन बच गए।
(ज) मानव की खोज : - पृथ्वी का विनाश देख कर पोनोमोसोर को दुख हुआ और उसने चिड़ियों की सभा बुलाई और उन्हे यह देखने के लिए भेजा कि मानव जीवित हैं या नहीं। ढेंचूआ – चौकीदार, कौआ – भण्डारी, कुहू – कोटवार, लिपि – सुसारी बन कर चारों ओर मानव की खोज करने निकले। पंद्रह दिन तक मानव का कुछ पता न चला। तब पोनोमोसोर ने देखा कि ढेंचूआ और लिपि का स्वास्थ्य गिरता जा रहा है और कौवा का रूप – रंग दिन-ब-दिन निखरता जा रहा है। उसे शक हुआ, उसने कौवे से उसकी मजबूती का कारण पूछा। साथ ही पोनोमोसोर को यह भी शक हुआ कि कहीं कौवा अपने कार्य में लापरवाही तो नहीं कर रहा है। पोनोमोसोर ने कौवे से ऊंचे स्वर में पूछा – “ तुम अपना कार्य सही ढंग से नहीं कर रहे हो?” कौवा ने कहा –"मैं अपना कर्तव्य अच्छे से कर रहा हूँ। मैं अपनी असफलताओं से निराश नहीं होता, ढेंचूआ और लिपि जल्दी निराश हो जाते है।" लेकिन बात कुछ और थी। एक दिन कौवा उस जोभी के पास गया था, जहां डकाई रानी और शेम्भु राजा रहते थे। वहाँ वे फल के छिलके फेंकते थे जिसे खाकर भाई – बहन जीवित थे। कौवा भी रोज उन छिलकों को खाने के लिए वहाँ जाता था इसीलिए वह बलवान होता जा रहा था। कौवा सत्य को अधिक दिनों तक छिपा नहीं सका और उसने पोनोमोसोर को सब बता दिया। पोनोमोसोर बहुत खुश हुआ और उसने मानव जोड़ी को अपने पास लाने कि आज्ञा दी।
(झ) पक्षियों में रंग परिवर्तन : - आरंभ में सभी पक्षी उजले रंग के थे। मानव की खोज करते समय ढेंचूआ बुरट पेड़ पर बैठा तो उसका रंग काला हो गया। कुहू कुछ देर पेड़ पर तो कुछ देर जमीन पर रहती थी, अतः वह काली भूरी हो गई। लिपि सिर्फ जमीन पर बैठी रही, अतः वह पीली बन गई। ये सभी पक्षी पोनोमोसोर को प्रतिदिन की घटनाओं की जानकारी देते थे।
(ञ) शेम्भु राजा – डकाई रानी और पोनोमोसोर में समझौता : - जब पोनोमोसोर ने मानव जोड़ी को अपने पास लाने की आज्ञा पक्षियों को दी तब सेम्भू राजा और डकाई रानी ने उन्हे देने से मना कर दिया। मानव जोड़ी का नाम जेरका और जेरकी था। पोनोमोसोर स्वयं शेम्भु राजा और डकाई रानी के पास गया और मानव जोड़ी को लेने की दुआ की। डकाई रानी ने कहा – “तूने मानव की सृष्टि की और उन्हे अग्नि से नष्ट किया। अब, जब अपने लिए बलि की कमी हुई तो उनकी खोज करते हो।" पोनोमोसोर ने कहा – “मैं मानव जाति का विनाश फिर नहीं करूंगा। तुम मानव का सातवाँ हिस्सा ले लो, मैं केवल एक हिस्सा लूँगा।" डकाई रानी का सातवाँ हिस्सा शरीर है और पोनोमोसोर का एक हिस्सा आत्मा है। अतः जब तक मानव जीवित है, पोनोमोसोर का उसपर कोई हाथ नहीं है।
(ट) कृषि की उत्पति : - अग्नि वर्षा के कई दिन बाद जब पृथ्वी ठंडी हुई तब जेरका और जेरकी दलदल जमीन से निकाले गए और पोनोमोसोर के पास लाये गए। पोनोमोसोर उन्हे देखकर प्रसन्न हुआ और कहा – “जंगल साफ करके खेती करो।" पोनोमोसोर ने उन्हे कुदाली, कुल्हाड़ी और कृषि के सब औज़ार दिये। उसी दिन से मानव जोड़ी ने कृषि कार्य शुरू किया।
(ठ) बीजों की रचना : - पोनोमोसोर ने मानव जोड़ी को कद्दू का बीज देकर रोपने की आज्ञा दी। कद्दू के पक जाने पर उन्होने उसे तोड़ा और जमीन पर पटक दिया। कद्दू फट गया और उससे अनेक प्रकार के बीज उत्पन्न हुए , जैसे – धान , गेहूं , उरद , कुरथी , गोंदली , मड़ुआ इत्यादि।
(ड) पोनोमोसोर ने हड़िया बनाना भी सिखाया : - मानव जोड़ी ने कृषि कार्य द्वारा धान और गोंदली की भी खेती की। तब पोनोमोसोर ने जेरका और जेरकी को धान और गोंदली से हड़िया बनाने को कहा। उसने रानु बनाना भी सिखाया।
भावार्थ :- पोनोमोसोर ने पृथ्वी की सृष्टि की। उसपर जीव जन्तु, पेड़ पौधे और मानव की भी रचना की। लेकिन वास्तविक रूप में कोई भी मनुष्य नहीं जानता कि पोनोमोसोर ने पृथ्वी और मानव कि रचना कैसे की? इसी वस्तुस्थिति को समझाने के लिए खड़िया जन जाति में लोक – कथा का प्रयोग किया जाता है। घोड़ा मानव विकास में शत्रुता का प्रतीक है जबकि कुत्ता मानव का रक्षक है। जलप्रलय और अग्नि वर्षा विनाश के प्रतीक हैं। शेम्भू राजा और डकाई रानी खड़िया देवी देवता है। इस लोक कथा में विभिन्न प्रकार के छोटे बड़े पक्षियों का जिक्र है जो मानव जीवन का दर्पण हैं। पक्षियों की तरह ही समाज में विभिन्न प्रकार के लोग हैं; कोई बड़ा, तो कोई छोटा, कोई धनी, तो कोई गरीब। समाज के होशियार लोग जीविकोपार्जन का कोई उपाय ढूंढ ही लेते हैं और लापरवाह लोग दर दर की ठोकरें खाते है। पक्षियों का रंग बदलना भी मानव के व्यवहार को दिखाता है। इस लोक कथा में पोनोमोसोर हड़िया पीना भी सिखाता है जो खड़िया जनजाति की जीवन – शैली और संस्कृति का प्रतीक है।
अगले भाग में जारी..............