


पलायन: ग्रामीण झारखंड का एक कड़वा सत्य

डॉ. संजय बाड़ा
"किसी को क्या बताये कि कितने मजबूर हैं हम
बस इतना समझ लीजिये कि मजदूर हैं हम"
झारखंड की ग्रामीण आबादी को अपनी रोजी-रोटी के लिए हर साल लाखों की संख्या में दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है। इसी रोजी रोटी के लिए झारखंड के कई मज़दूर उत्तराखंड गए थे। आँखों मे सपना लिए अपना घर बार छोड़ कर वो चले थे एक नई दुनिया में, जहाँ से अब लौट पाना अब मुश्किल है। उतराखंड में जोशीमठ के पास 23 अप्रैल को ग्लेशियर टूटने से झारखंड के कई मजदूरों की मौत हो गई है और कई घायल हैं। घायलों में पांच मजदूरों का इलाज जोशीमठ और दो का देहरादून में इलाज चल रहा है। सभी मजदूर वहां बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन द्वारा बनायी जा रही सड़क का काम कर रहे थे।
चमोली के जिलाधिकारी ने 25 अप्रैल को झारखंड के आपदा प्रबंधन सचिव को इसकी सूचना दी है। मृतकों और घायलों की सूची भी भेजी गई है। प. सिंहभूम जिले के घायलों में फिलीप बुढ़, (सिमको, गोइलकेरा), कल्याण मार्की (गंजना, बंदगांव), अनुज टोपनो (गंजना, बंदगांव) शामिल हैं।
इनकी हुई मौत
1 नियारन कंडुलना: पुत्र डेनयामिन कंडुलना, बलांकेल, खूंटी
2 पॉल कंडुलना: पुत्र डेनयामिन कंडुलना, बलांकेल,खूंटी
3 हनुक कंडुलना: पुत्र पटरस कंडुलना, बलांकेल, खूंटी
4 साजेन कंडुलना: पुत्र जेम्स कंडुलना,बलांकेल, खूंटी
5 मसीह दास मार्की: पुत्र जॉन मार्की,गंजना, पश्चिम सिंहभूम
6 राहुल कुमार: पुत्र गोवर्धन कुंवर, कांजो, दुमका
7 निर्मल सांडिल: पुत्र विलियम सांडिल, सरंगडीह, रांची
8 सुखराम मुंडा: पुत्र नारायन मुंडा,करूडीह, रांची
9 तारिनी सिंह : पुत्र देवनारायण सिंह पहाड़ीडीह, दुमका
10 मनोज टंडर: पुत्र ऐला थांदर,जलवे, दुमका
11 रोहित सिंह: पुत्र राबिन सिंह, पहाड़ीडीह, दुमका
12 सुनील बरवा
झारखंड के इन मज़दूरों को एवं कई अन्य मज़दूरों को अपनी आजीविका के लिए अपना घर बार गाँव छोड़ना पड़ा। ऊपर दिए गए नामो के अतिरिक्त कई अन्य मज़दूर श्रमिक है जिनमे स्त्री, पुरूष, बच्चे शामिल है जो विभिन्न कारणों से अलग अलग जगहों पर असामयिक मृत्यु या दुर्घटना के शिकार हो जाते है और समाज की मुख्यधारा में महत्वहीन होने की वजह से हम इनके बारे में न जान पाते है और न ही जानने की कोई कोशिश ही करते है।
1 मई मजदूर दिवस सिर्फ उन्हें याद कर एक दिन केवल सम्मान देना नही है पर यह दिन हमे याद दिलाता है उनके वर्ष भर के संघर्ष, शोषण एवं चुनौतीयों को जो सदियों से जारी है।
झारखंड के लिए पलायन एवं प्रवासी मज़दूरों की समस्या एक गंभीर विषय है पिछले वर्ष अर्थात 2020 में राज्य सरकार ने एक अच्छी पहल की और प्रवासी मज़दूरों के लिए नई नीति एवं समय समय पर उनकी मोनिटरिंग की घोषणा की।
वास्तव में यह सवाल इतना गंभीर इसलिए भी है कि यह समस्या आज की नहीं है। सदियों पूर्व से झारखंड के आदिवासी एवं मूलवासी इस समस्या का सामना कर रहे है कभी असम के चाय बागान कभी अंडमान निकोबार और अब तो दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा, उत्तर प्रदेश आदि जैसे बड़े राज्यों के शहरों में दिहाड़ी मजदूर से लेकर दाई की नौकरी एवं प्राइवेट कंपनियों में छोटी मोटी नौकरी करने के लिए बड़ी संख्या में इनका पलायन हुआ है। पिछले वर्ष लोकडौन की वजह से कई मज़दूर श्रमिक एवं प्राइवेट नौकरी करने वाले अपने अपने गाँव विभिन्न यातनाएं सहते हुए वापस तो आये पर आज जब पेट की बात आई तो फिर से इनका पलायन बढ़ गया है।
■ बड़ी संख्या में इस पलायन का कारण क्या है?
पहला कारण
~सामाजिक आर्थिक शोषण
~भूखमरी
~बीमारी
~प्राकृतिक विपदाएँ
~बेरोजगारी आदि
दूसरा कारण
~शहरों में रोजगार के बेहतर अवसर
~अधिक मजदूरी दर
~बेहतर सुख सुविधा
~शहरी चकाचौंध
~बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं आदि
इन सभी कारणों के अतिरिक्त कई अन्य कारण भी है जो झारखंड जैसे प्रदेश के लोगों को पलायन के लिए मजबूर कर रहा है; शिक्षा की कमी के कारण कई लोग बहकावें, धोखे एवं लालच में आकर बड़े बड़े शहरों में दाई या बंधक मज़दूर के रूप में कार्य कर रहे है और शोषण के शिकार हो रहे है।
अगर बेहतर प्रयास किया जाय एवं नीति निर्माणकर्ताओं एवं कार्य योजना में ईमानदारी हो तो स्वरोजगार एवं अन्य योजनाओं का लाभ उठाकर घर गाँव मे रहकर बेहतर रोजगार के विकल्प प्राप्त किये जा सकते है।
★इस समस्या का समाधान किस प्रकार किया जा सकता है
~कल्याणकारी योजनाओं का बेहतर तरीके से संचालन
~ग्रामीण क्षेत्रों का विकास
~स्वरोजगार के विकल्प तलाशना (स्वरोजगार के क्षेत्र में व्यक्ति विशेष को निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है)
A स्वरोजगार के लिए प्रेरित होना
B हुनर का इस्तेमाल करने की क्षमता
C बाजार से प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता
D जोखिम उठाने का साहस
E पूँजी का सही उपयोग
F धैर्यवान होना आवश्यक
G नशापान से दूर रहना
H दूरदर्शी होना
~पर्यटन क्षेत्र का विकास
~समानता और न्याय पर आधारित समाज की स्थापना
~मौलिक सुविधाएं उपलब्ध करवाना
~भ्रष्टाचार-मुक्त प्रशासन की स्थापना
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने एक बार कहा था कि “हमारी योजनाओं का केवल 15 प्रतिशत धन ही आम आदमी तक पहुंच पाता है।” देश के किसी गांव में दिल्ली से भेजा गया एक रुपया वहां पहुंचते-पहुंचते 15 पैसा हो जाता है। यह ऐसा क्यों होता है? वह शेष राशि 85 पैसे कहां चले जाते हैं। इसका एक ही जवाब है कि वह राशि भ्रष्टाचार रूपी मशीनरी द्वारा हजम कर ली जाती है।
वास्तव में यदि ग्रामीण स्तर पर विकास एवं स्वरोजगार के विकल्प को मजबूती से स्थापित किया जाय एवं सरकारी तथा गैरसरकारी संस्थाओं द्वारा ईमानदारी पूर्वक योजनाओं का संचालन किया जाय तो झारखंड जैसे पिछड़े प्रदेश से पलायन जैसी समस्या का पूर्णतः तो नहीं, पर बहुत हद तक इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। याद रखें यदि ये मज़दूर या श्रमिक न होते तो हम और आप इतने सुकून से घर दफ्तर सड़क या अन्य मूलभूत सुविधाओं का इस्तेमाल न कर पाते । इनको सम्मान देना इनके अधिकारों की रक्षा और इनके जीवकोपार्जन के लिए बेहतर नीति का निर्धारण करने के लिए सरकार को सलाह एवं सहयोग करना हम सभी का कर्तव्य है।
