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संघर्ष : अस्तित्व की (भाग - १)

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कृति रोली कच्छप

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झारखंड जंगल, पहाड़, नदी, नाले और खूबसूरत वादियों का राज्य है। यह कई सारी खनिज संपदाओं का श्रोत है। यहाँ की ख़ासियत यहाँ रह रहे आदिवासी समाज की है। ये मिलनसार और खुश मिज़ाज रहते है। आदिवासियों की खास बात यह होती हैं की ये लड़के लड़की में भेदभाव नहीं करते। प्रकृति ही इनकी सब कुछ होती है। लेकिन कभी कभी अपने ही कुछ लोग जिंदगी के लिए सबक बन जाते है। जिंदगी जीने के लिए हर कोई यहाँ खुद से लड़ता है। लेकिन हर समाज में कोई ना कोई त्रुटी होती है लेकिन क्या इससे पूरे समाज को बदनाम कर दिया जाए?

ऐसी ही एक जीवन जीने की लड़ाई की कहानी जो आदिवासी समाज के गहरे सच्चाई को बया करती हैं, मैं कहने जा रही हूं।

 

सोमवारी एक बहुत ही मिलनसार लड़की थी। जब वो पैदा हुई तो उसके पिताजी ने खुशी से सबके घर में डूम्बू बांटे। वो सोमवार के दिन पैदा हुई इसीलिए उन्होंने उसका नाम सोमवारी रखा। वो उसे प्यार से लाडली कर के बुलाते थे। परिवार में उसके अलावा उसका एक बड़ा भाई भी था जिसका नाम राकेश था। वो हमेशा खुश रहती और चहकती, खिलखिलाते दिखती।

जब वह छोटी थी तब उसके पिताजी उसे घने जंगल के एक तरफ पशु चराने ले जाते। जब वो थक कर छाव में बैठ जाते तो सोमवारी उनसे बहुत सारे अजीब सवाल करती। सोमवारी, जो महज 6 साल की थी ,उसे बहुत प्यार से स्कूल जाने के बारे पूछा। उसने हां में जवाब दिया।

अगले सुबह पिताजी खाली पैर उन अलकतरे से बने रोड पर चलकर बाज़ार चल दिए, बिटिया के स्कूल का सामान लाने। उन्होंने बाजार से नई ड्रेस, कुछ कॉपियां और एक बस्ता खरीदा और दोपहर की धूप में फिर घर की ओर निकल पड़े।

वो बाजार से घर पहुंचे तो देखा कि सोमवारी आंगन में बैठे उनका इंतजार कर रही हैं। को अपनी सारी थकावट भूल कर सोनवारी को गोद में उठा लेते है। फिर उसे स्कूल का सामान देते हुए उसके सर पर हाथ फेरता है। सोमवारी खुशी से झूम उठती है और घर में दौड़ दौड़ कर अपने मां और भाई को ड्रेस दिखाती है। सभी उसकी खुशी को देख कर काफी खुश होते है।

अगली सुबह सोमवारी के पिता जल्दी उठ जाते है और उसके लिए नाश्ता बनाते है और कुछ स्कूल ले जाने के लिए भी। उसके पिता उसे तैयार करके स्कूल छोड़ कर आते हैं और इस तरह से उसका नया सफर शुरू होता है। वो स्कूल में मन लगा कर पढ़ती और घर आते ही अपने पिताजी के लिए खाना लेकर जंगल की तरफ जाती। यह उसकी दिनचर्या में शामिल हो गया था।

समय बीतता गया और सोमवारी 15 साल की हो गई। उसने  आगे की पढ़ाई के लिए गांव से बाहर के स्कूल में दाखिला ले लिया। यह स्कूल बगल के गांव में था और इसका रास्ता पहाड़ से सट कर जाता था। सोमवारी के पढ़ने की इच्छा को देख कर पिता ने उसे नही रोका। वह रोज सुबह जल्दी उठती और घर के कामों में मां का हाथ बटाती और स्कूल के लिए निकल जाती। दोपहर जब घर वापस आती तो मुंह हाथ धो कर अपने पिता के लिए खाना लेकर जंगल की तरफ चली जाती।

एक दिन जब वह खाना लेकर जंगल की तरफ जा रही थी तब अचानक उसे पहाड़ की कुछ दूर से आवाज सुनाई देती है। जैसे ही वो आगे बढ़ती है बड़ी तेजी से एक कार उसके सामने से गुजरती है। वो डर जाती है और खुद को गिरने से संभालती है। कार में बैठे लोग उसे पीछे पलट कर देखते हैं लेकिन वो पेड़ के पीछे छुप जाती है। कार जैसे ही रूकती है.. सोमवारी की जिज्ञास बढ़ती है और वह पेड़ की ओट में छिप छिप कर कर के थोड़ा नजदीक पहुंचती है।

पेड़ की ओट से उसे आशा दीदी (रश्मी) दिखाई पड़ती है जो एक बच्ची के मुंह में हाथ रखे उसे गाड़ी के अंदर बैठाने की कोशिश कर रही थी। सोमवारी ये सब देख कर डर जाती है और उसके मुंह से चीख निकल जाती हैं। रश्मी यह सुन लेती हैं और साथ खड़े लोगो को पेड़ के पीछे देखने को कहती है। सोमवारी डर जाती है और भागने लगती हैं जिससे की वो 4 आदमी उसे आसानी से देख लेते है और पीछा करते हैं। सोमवारी बदहवास होकर भागने लगती है। उसके दिमाग में सिर्फ एक बात थी की घर पहुंच जाए, बस। भागते वक्त वो रास्ता भटक जाती है और घर का रास्ता छोड़ वह जंगल की दूसरी तरफ चली जाती है।

लोग उसका बहुत तेज़ी से पीछा करते है और आख़िर में उसे घेर लेते है। एक आदमी उसे पीछे से दबोच लेता है और मुंह बन्द कर देता है ताकि वह चिल्ला ना पाए। उसे भी उसी लड़की के साथ कार में बिठा दिया जाता है और आशा दीदी उसके मुंह पर एक कपड़ा बांध देती है।

बोलने और हाथ पैर चलाने से लाचार सोमवारी के आखों में आसू आ जाते है। वो सामने बैठी दूसरी लड़की की ओर देखती है। वो लड़की बिलकुल चेहरे पर बिना कोई भाव लिए बैठी थी जैसे मानो उसे पता हो की उसके साथ क्या होने वाला है। सोमवारी को रोता देख एक आदमी उसके चेहरे पर हाथ फेरता है और कहता है, "अरे रोती क्यूं हो हम तुम्हे इस से अच्छी जगह लेकर जा रहे है।" सोमवारी अपने सर से उसे मरने को कोशिश करती है लेकिन नाकाम हो जाती है। यह देख कर दूसरा आदमी उसे एक थप्पड़ मार देता हैं।

गाड़ी बंद और काला शीशा होने की वजह से सोमवारी बाहर नहीं देख पा रही थी न ही उसे पता चल रही थी की उन्हें कहा ले जाया जा रहा है। कुछ देर बाद चारों आदमी आपस में कुछ बात करते है और उनमें से एक अपनी पॉकेट से रुमाल निकालता है और दोनो लड़कियों के नाक के सामने ले जाता हैं। सोमवारी को इससे पहले की कुछ समझ आता उसकी आंखें के सामने सब कुछ धुंधला हो जाता है।

जब उसकी आंखें खुलती है तो वो अपने आप को एक खाली कमरे में पाती है। कमरे में एक रोशनदान से हल्की सी रोशनी आ रही थी। कमरे में अंधेरा ही अंधेरा था। उसे कुछ भी दिखाई नही दे रहा था। वो उठने की कोशिश करती है लेकिन उसे अपने पैर महसूस नहीं होते है। वो डर जाती है और अपने सर को नीचे कर देखने की कोशिश करती है। उसके दोनो पैर बंधे हुए थे और पैरो में सूजन थी। रोशनदान से आ रही रोशनी कुछ तेज हुई तो उसने देखा की उस कमरे में 5 और उसकी ही जैसी लड़किया थी और उनमें से एक वो थी जो उसकी साथ गाड़ी में थी। वो समझ नहीं पा रही थी की ये सब क्या हो रहा है और वो कहां है। उसका मन उदास था और उसे अपने पिता की याद आ रही थी।

इधर सोमवारी  के पिता जो अपनी बेटी के खाना लाने का इंतजार कर रहे थे, शाम होते जब घर वापस लौट ते और सोमवारी को आवाज लगाते है तो उन्हें पता चलता है की सोमवारी तो उन्ही के पास दोपहर का खाना लेकर गई थी। सोमवारी के पिता के दिमाग़ में कई सारी बातें चलती रहती हैं। वो इधर उधर सोमवारी के बारे सबसे पूछने लगते है।

जब वो कही नहीं मिलती है तब वो जंगल की तरफ जाने का तय करते हैं। वो हाथ में लाठी लिए और एक हाथ में टॉर्च लेकर जंगल की तरफ चल देते हैं। सोमवारी की मां भी उनके पीछे चली जाती है। सोमवारी के पिता काफी देर टॉर्च लेकर इधर उधर ढूंढते है लेकिन सोमवारी का कहीं अता पता नहीं चलता। वो थक हार कर एक पत्थर पर बैठ जाते हैं।

 

क्या उन्हे पता चल पाएगा की सोमवारी कहां हैं? क्या सोमवारी उस बंद कमरे से निकल पाएगी? क्या सोमवारी के मन में चल रहे सारे सवालों के जवाब उसे मिलेंगे।

(To be continued ....)

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