


‘ट्राइबल यूनिवर्सिटी’ झारखंड के लिए एक अनुपम उपहार

डॉ. संजय बाड़ा

झारखंड जैसे आदिवासी बहुल इलाके में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है, जहाँ झारखंड के आदिवासी छात्र छात्राएं कुछ वर्ष पूर्व आरम्भ किये गए झारखंड सरकार की ‘मरांग गोमके जयपाल सिंग मुंडा छात्रवृत्ति योजना’ के तहत विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए जा रहे हैं। वहीं झारखंड में पूर्वी भारत की पहली ट्राइबल यूनिवर्सिटी (Tribal University) की स्थापना की जा रही है। 20 सितंबर 2022, दिन मंगलवार को राज्यपाल श्री रमेश बैश ने प्रस्तावित विश्विद्यालय योजना पर अपनी मुहर लगा दी है।
यूनिवर्सिटी का नाम ‘पंडित रघुनाथ मुर्मू जनजातीय विश्वविद्यालय’ होगा। रघुनाथ मुर्मू को झारखंड के सबसे बड़े आदिवासी समुदाय संथालों की भाषा संताली का सबसे बड़ा संवर्धक माना जाता है। उन्होंने 'ओलचिकी' लिपि का आविष्कार किया था। यह यूनिवर्सिटी जमशेदपुर के गालूडीह और घाटशिला के बीच स्थापित होगी। सरकार ने इसके लिए 20 एकड़ जमीन भी चिन्हित कर ली है। वस्तुतः इसके माध्यम से जनजातीय भाषाओं और आदिवासी समुदाय की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को सहेजने, उनपर शोध करने तथा आदिवासी समाज के मेधावी विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया जाएगा।
आदिवासियों के उच्च शिक्षा में बढ़ते कदम को एक नई दिशा देने के लिए झारखंड सरकार का यह कदम अत्यंत सराहनीय है।
इससे पूर्व इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, को अमरकंटक, अनूपपुर जिले, मध्य प्रदेश, भारत में स्थापित किया गया हैं इसे भारत सरकार द्वारा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2007 के अंतर्गत बनाया गया हैं। इस जनजातीय विश्विद्यालय के उद्देश्य एवं लक्ष्यों को विश्विद्यालय के वेबसाइट पर देखा जा सकता है, जो इस प्रकार से है-
लक्ष्य और उद्देश्य -
●मुख्य रूप से भारत के जनजातीय आबादी के लिए शिक्षा के अवसर, विशेष रूप से उच्च शिक्षा और अनुसंधान सुविधाएं प्रदान करने के लिए।
●आदिवासी कला में शिक्षण और अनुसंधान सुविधाओं, परंपरा, संस्कृति, भाषा, औषधीय प्रणाली, सीमा शुल्क, वन आधारित आर्थिक गतिविधियों , वनस्पति, जीव और जनजातीय क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित प्रौद्योगिकियों में उन्नति प्रदान करके ज्ञान का प्रसार और अग्रिम के लिए।
●विशेष रूप से सांस्कृतिक अध्ययन और आदिवासी समुदायों पर अनुसंधान करने के लिए, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों और संगठनों के साथ सहयोग करने के लिए।
●आदिवासी केंद्रित विकास के मॉडल तैयार करने के लिए, रिपोर्ट और मोनोग्राफ प्रकाशित और जनजातियों से संबंधित मुद्दों पर सम्मेलनों और सेमिनारों का आयोजन करने के लिए और विभिन्न क्षेत्रों में नीतिगत मामलों को जानकारी प्रदान करने के लिए।
●प्रबंध करने में सक्षम जनजातीय समुदायों के सदस्यों को बढ़ावा देने का प्रबंध है और अपने स्वयं के एक विश्वविद्यालय के माध्यम से उच्च शिक्षा तक पहुँच द्वारा अपनी जरूरतों की देखभाल के लिए उचित कदम उठाने के लिए।
●यह उचित समझे की सीखने के इस तरह के अन्य शाखाओं में शिक्षण और अनुसंधान सुविधाएं प्रदान करने से ज्ञान का प्रसार और अग्रिम के लिए।
●अनुशासनात्मक अध्ययन और शोध में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में नवाचारों को बढ़ावा देने के लिए उपयुक्त कदम उठाने के लिए और सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति और भारत संघ के भीतर अनुसूचित जनजातियों के कल्याण एवं सुधार के लिए विशेष ध्यान देने के लक्ष्य और उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए प्रमुख जोर जनजातियों के लिए अधिक अवसर उपलब्ध कराने पर होगा।
झारखंड के इतिहास में आदिवासी नायकों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है परंतु इस क्षेत्र में सराहनीय शोध के अभाव में अभी तक उनकी गौरव गाथा का उल्लेख कुछ ही पंक्तियों में सीमित रह गयी है अब एक आशा जगी है कि इस जनजातीय विश्वविद्यालय के द्वारा नए शोधकर्ताओं एवं विश्वविद्यालय द्वारा आदिवासियों के इतिहास, संस्कृति, भाषा एवं उनके जीवन के विभिन्न आयामों की नई परते खुलने पर खुलकर सामने रखी जा सकेंगी।
झारखंड के इस जनजातीय विश्विद्यालय के संदर्भ में इसके उद्देश्य एवं लक्ष्य इस प्रकार से बतलाए गए है-
■विश्वविद्यालय की स्थापना का मुख्य उद्देश्य मुख्य रूप से आदिवासी आबादी के लिए आदिवासी अध्ययन पर उच्च शिक्षा और अनुसंधान की सुविधा प्रदान करना है।
■ आदिवासी केंद्रित सामाजिक विज्ञान, कला, संस्कृति, भाषा और भाषा विज्ञान, विज्ञान, वन आधारित आर्थिक गतिविधियों पर शिक्षण और अनुसंधान।
■विश्वविद्यालय का उद्देश्य देश और विदेश के अन्य विश्वविद्यालयों और संगठनों के सहयोग से आदिवासी आबादी पर सांस्कृतिक अध्ययन और अनुसंधान, आदिवासी केंद्रित विकास मॉडल तैयार करना
■अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक स्थिति में सुधार करना और विशेष ध्यान देना। अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और बौद्धिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक विकास के लिए।
हम इस जनजातीय विश्वविद्यालय से यही अपेक्षा कर सकते है कि यह अपने उद्देश्य एवं लक्ष्य की ओर सुगमता से आगे बढ़े। आदिवासियों के क्रमिक विकास की कड़ी में यह अपनी अमिट पहचान बनाये एवं इतिहास में इस विश्वविद्यालय का नाम इसके महत्वपूर्ण काम की वजह से जाना जा सके।