


वीर बुधु भगत ने इतिहास में कोल विद्रोह को अमर बना दिया

डॉ. संजय बाड़ा

वीर बुधु भगत की तस्वीर को नमन करते झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन
P.C. https://bihar.punjabkesari.in/jharkhand/news/hemant-soren-bowed-to-amar-shaheed-veer-budhu-bhagat-1332777
आदिवासी विद्रोहों की श्रृंखला में कोल विद्रोह का महत्वपूर्ण स्थान है। इस विद्रोह के प्रमुख नायक वीर बुधु भगत थे। इनकी वीरता का परिचय इसी बात से स्पष्ट हो जाता है कि कंपनी सरकार ने इन्हें पकड़ने के लिए इनपर 1000 रु का ईनाम रखा था। शायद आज से लगभग 200 साल पहले 1000 रु का मूल्य वही होगा जो आज लाखों और करोड़ों में होगा। इतनी बड़ी रकम के ईनाम के रूप में रखे जाने से ही वीर बुधु भगत की वीरता और इस कोल विद्रोह के समसामयिक महत्व को समझा जा सकता है। इस विद्रोह में शामिल लोगों की लड़ाई अंग्रेज़ों, ज़मींदारों तथा साहूकारों द्वारा किए जा रहे अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध थी।
आदिवासियों के द्वारा किये गए विद्रोहों में कोल विद्रोह का विशिष्ट स्थान है, क्योंकि यह पहला सुसंगठित और व्यापक आदिवासी विद्रोह था। अपने नए मालिकों द्वारा शोषित, दिकू (बाहरी लोग) द्वारा उत्पीड़ित एवं न्याय के अपने पारम्परिक स्रोत से वंचित छोटानागपुर के आदिवासियों के लिए विद्रोह के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था।
कृषि और शिकार पर आश्रित इन लोगों से मनमाना कर वसूलने के लिए इन पर तरह - तरह के अत्याचार किए जाते थे। कर चुकाने की असमर्थता में इनकी जमीन ' दीकुओं ' ( बाहरी लोग ) को दे दी जाती थी। जमींदार इनसे बेगार कराते थे। वे स्वयं पालकी में चलते और कहारों का कार्य आदिवासी लोग करते थे। इनके पशुओं की देखभाल भी आदिवासी ही करते थे।
इस विद्रोह का विश्लेषण करते हुए कैथबर्ट ने कहा है, " इन जमींदारों ने किसानों पर इतने अत्याचार किए कि गाँव - के - गाँव उजड़ गए। इस सामंती व्यवस्था में जमींदार शायद ही किसानों के हित की कोई बात सोचता हो और प्रशासनिक वर्ग अलग से इनका खून चूस रहा था। फलत : आबादी का हश्र हो रहा था और लोग बस किसी प्रकार अपना जीवन - यापन कर रहे थे।"
बुधु भगत का जन्म 17 फरवरी 1792 में सिलगाई ग्राम ,चान्हो, रांची, झारखंड में हुआ था। वे तलवार चलाने और धनुर्विद्या में निपुण थे। बुधु भगत बचपन से ही जमीदारों और अंग्रेजी सेना की निर्दयता को देखते आ रहे थे, जिसकी वजह से बुधु भगत कोयल नदी के पास बैठकर घंटों तक अंग्रेजों और जमींदारों को भगाने के बारे में सोचते रहते थे। बुधु भगत को देवदूत समझ कर आदिवासियों ने उनको अन्याय के विरुद्ध लड़ने के लिए आह्वान किया, और सभी लोग उनके साथ तीर, धनुष, तलवार, कुल्हाड़ी इत्यादि लेकर खड़े हो गए। इस दौरान कैप्टन द्वारा बंदी बनाए गए सैकड़ों ग्रामीणों को उन्होंने लड़कर छुड़वा लिया। इसके अलावा बुधु भगत ने गुरिल्ला युद्ध के लिए अपने दस्ते को प्रशिक्षित किया।
अंग्रेजों द्वारा बुधू भगत को घेरने एवं गिरफ्तार करने के सभी प्रयास निष्फल हो चुके थे। 13 फरवरी 1832 में बुधू अपने साथियों के साथ कैप्टन एमपी के द्वारा सिलागांई गांव में घेर लिए गए। उस समय बुधु आत्मसमर्पण करना चाहते थे जिससे कि निर्दोष लोगों की जाने ना जाए। लेकिन बुधू के भक्तों उनके चारों ओर घेरा डालकर खड़े हो गए। कैप्टन के चेतावनी के बाद वहां पर अंधाधुंध गोलियां चला दी गई, जिसकी वजह से करीबन 300 से अधिक ग्रामीण मारे गए। इसके साथ बुधु भगत और उनके बेटे हलधर और गिरधर भी अंग्रेजों के साथ लड़ाई करते हुए शहीद हो गए।
मेजर सदरलैंड ने यद्यपि बुधू भगत के अनुयायियों की दृढ़ता एवं बलिदानी युद्ध क्षमता की प्रशंसा करते हुए सरकार को अपनी रिपोर्ट भेजी थी, किन्तु उसने यह भी कहा था कि हमारे बन्दूक एवं पिस्तौल के सम्मुख कोलों के तीर एवं कुल्हाड़ी की क्या औकात थी?
कोल विद्रोह के उपरांत छोटानागपुर को नॉन रेगुलेशन प्रान्त घोषित किया गया जिसका तात्पर्य था कि यहाँ कंपनी सरकार का कानून लागू नहीं होता और यहाँ साउथ वेस्ट फ्रंटियर एजेंसी की स्थापना की गई और कैप्टन विल्किंसन को इसका प्रमुख बनाया गया। साथ ही विल्किंसन रूल लागू कर मुंडा मानकी व्यवस्था को प्रमुखता से स्थान दिया गया। वीर बुधु भगत शहीद हो गए पर उन्होंने कोल विद्रोह एवं दिकुओ के विरुद्ध अपने संघर्ष को इतिहास में अमर बना दिया।