



बिनोद गुरुजी
वजूद

हे आदिवासी तेरा वजूद मिट जाएगा।
अपने इतिहास के पन्नों को पलट कर देखो,
अनगिनत शोषण और अत्याचार की कहानी,
मिल जायेगी हर पन्नों पर पुरखों की संघर्ष की कहानी।
जागो......जागो हे आदिवासी तेरा वजूद मिट जायेगा।
हम हैं आदिवासी, हम हैं इस देश के मूलवासी, नहीं हैं हम वनवासी।
कुर्सी की राजनीति में हम कई जातियों में बंट गये।
जन-नेताओं ने अपना काम कर दिया, हम कई धर्मों में बँट गये।
मौका देख, हमारा जल, जंगल जमीन छीन लेने को,
नक्सल के बहाने हमारे बिरासत में बंदुक लेके बैठ गये।
हमारी ईमानदारी और सादगी को दुश्मन, हमें मूर्ख समझ बैठ गये।
वक्त है चेहरे को पहचानने का, कि कौन कर रहा है उपकार,
और कौन कर रहा है हम पर अत्याचार।
जागो.....जागो हे आदिवासी तेरा वजूद मिट जायेगा।
रूक नहीं रहे पलायन, शोषण और अत्याचार, हो रहे हैं हमारी संस्कृति पर प्रहार,
और रोज हो रहे अपने माँ-बहनों पर जूल्मी और अत्याचार,
हर रोज छिनते दुनिया के गलियारों में, हमारा हक और अधिकार,
रोज बिकते जानवरों के मोल में बेटियाँ और बिकते मजदूर।
हाथों में जूठे बत्र्तन हैं आज धोने को मजबूर।
सुनता कौन, आज हमारी पुकार, खुद को संभलना होगा,
संभालना होगा खुद का कमान, वजूद की लड़ाई में एक साथ आना होगा।
जागो.....जागो हे आदिवासी तेरा वजूद मिट जायेगा।
आरक्षण का लाभ लेके, आरक्षण को बचाने भूल गये,
चंद दौलत क्या कमा लिये आदिवासियत को भूल गये,
युवा तो दुनिया के चकाचौंध में अपने को भूल गये,
हाथ में क्या मोबाईल आया इन्टरनेट की दुनिया में डूब गये,
अह्म की मस्ती में, हम अपने रिश्तेदारों को भूल गये,
और भूल गये उन शहीदों कोे जिन्होंने बिरासत दे गये,
आज तुम अन्न के मालिक हो, कल एक दाने के मोहताज हो जाओगे।
वो दिन दूर नहीं आज तुम फिर से गुलाम हो जाओगे।
जागो....जागो हे आदिवासी तेरा वजूद मिट जायेगा।
वक्त आ गया है दुनिया के जुमलों से बाहर आने को।
हाथों में थाम लो किताब और कलम, दिखा दो अपनी काबिलियत और एकता को,
अभी नहीं, तो कभी नहीं, गुलामी से पहले कुर्बानी को।
कर दो उलगुलान अपने हक और अधिकार पाने को,
खुद जागो और जगाओ, अपने बिखरे समाज और परिवार को
जागो...जागो हे आदिवासी तेरा वजूद मिट जायेगा,
यह निश्चित है आने वाला कल, इतिहास के पन्नों में तेरा वजूद मिट जायेगा।