


मोहब्बत में जिंदगी कुर्बान

प्यार एक एहसास की चीज है लेकिन युवाओं में आज प्यार सिर्फ वासना बन कर रह गयी है। अपनी शरीरिक सुख की तलाश में सारी मर्यादाओं को पार कर, बेशर्म होकर, अपने भविष्य को ताक पर रख रहे हैं, अपने जीवन काल के कीमती समय को बर्बाद कर रहें हैं, और एक दिन ऐसा समय आता कि ये प्यार-व्यार का चक्कर इनकी जिंदगी बर्बाद कर देता हैं। शायद कहीं न कहीं परिवारिक आजादी साथ में आग मे घी डालने की चीज मोबाईल, अश्लील फिल्म की अहम भूमिका है। पर यह दिल की बीमारी जब तक माँ-बाप का खाने का ढाबा खुला रहता है तब तक युवाओं को सारी दुनिया हरा-भरा ही लगता है।
बिनोद गुरुजी
कहानी कड़वी है पर हकीकत है। एक मध्यम परिवार में दो बहनें थी- रीना और कोमल। समय के साथ बड़े होना, स्कूल और कॉलेज तक पढ़ाई करने के साथ जवानी के पायदान पर खड़े होना, न चाहते हुए भी युवास्था में आकर्षण होना स्वाभाविक था। सबसे बड़ी वाली रीना साँवली, सुशील, शांत स्वभाव दिखने में उतनी सुंदर नहीं थी। पर छोटी वाली कोमल अति सुंदर थी और चंचल भी, उसकी चाल ढाल में स्फूर्ति हमेशा बनी रहती थी। कोमल ने समय से पहले ही प्यार का एहसास को अपने जीवन में सफलता को अंतिम मान लिया। कैरियर बनाने के वक्त सारा समय ध्यान, मौज-मस्ती, उन्होंने लवगुरू के क्लास में गुजार दिया। इस प्यार में जैसे को तैसा मिलना स्वाभविक था। इस दिल की बीमारी में कोमल को एक ऐसा ही हम उम्र कुणाल से दोस्ती हुई जो इसी मस्ती की तलाश में ऐसा डूबा कि वह आगे की जिंदगी के बारे सोचना छोड़ माँ-बाप के कमाये धन पर घमंड और महँगी बाइक में घुमना और बड़े रेस्टोरेंट में जाना, सैर सपाटे करना कपड़ों में परफ्युम की खुशबू विखेरता फिर रहा था। पड़ोस देख के व्यंग कसते हुए कहा करते थे-
जे पानी में आईग लगावेला उके जवानी कहेना,
और जे बाप करे पैसा में छोड़ी घुमावेला
उक्के सुखल फुट्टानी कहेना।।
दोनों लैला- मंजनू को कब समय निकल गया उन्हें पता ही नही चल पाया। दोनों की शादी हुई माँ- बाप बने, अब बच्चों की परवरिश की चिंता हुई क्योंकि उनके सामने आय के कोई पुख्ता साधन नहीं थे। समय बीतने के साथ बुढ़े माँ-बाप की मृत्यु हो गयी। अब शूरू होता है-इन जोड़ो में परिवार चलाने को लेकर, सभी घर का एक-एक सामान बिक जाता है फिर पैसे की किल्लत को लेकर तकरार,लड़ाईयाँ तो भोजन सेवन की तरह होता है, और परिवार में प्यार तो ऐसे चला जाता है जैसे ढिबरी जलाकर खोजने से भी नहीं मिलता है। अब कुणाल चिंता को बहाना बनाकर, नशे का सेवन करने लगता हैं। पार्कों में जिस प्रेमिका के बालों को सहलाते कभी जुल्फों की तारिफ किया करता था आज वही जुल्फों के एक बाल सब्जी में मिल जाए तो गली में गूँजते और जुबान से निकले शब्द कानो से होते हुए दिल में लगने वाले अलंकार और लात-घुँसों के साथ अपनी पत्नी की तारिफ करता था और एक दिन समय के साथ नशा उन्हें कब्रिस्तान तक पहुँचा देता है। उनका परिवार बच्चे तितर- बितर हो जाते हैं। रिश्तेदार दोस्त धीरे-धीरे अपनी दूरियाँ बना लेते हैं। एक दिन कोमल चुपके से अपने बच्चों को नाना-नानी के पास छोड़ बरतन माँजने दिल्ली चली जाती हैं और उसके बच्चे अभी भी अपने नम आँखों से माँ के वापस आने का राह देख रहे हैं।
वहीं बड़ी वाली बहन रीना ने अपने जिंदगी को समझते हुए बड़े बुजूर्गों को सम्मान किया और आज्ञा मानी। एक अच्छे संस्कार को ग्रहण किया। पारिवारिक सामाजिक मर्यादा को रखते हुए उसने समय को पहचाना और उसका सदुप्योग करते हुए अपने जवानी में अपने आप को संयम बरतते हुए आगे बढ़ने की सोची अपने काॅलेज की पढ़ाई के दौरान कई साथियों से दोस्ती हुई पर वे दोस्त हमेशा अपने जिंदगी, परिवार और कैरियर के प्रति गंभीर रहते थे। इन्ही दोस्ती में कोई एक खास था जिन्होंने हमेशा मित्रतापूर्वक, एक दूसरे को पढ़ाई और कैरियर बनाने में मदद किये। जिसका परिणाम आज रीना सरकारी नौकरी पर कार्यरत हंै और वो खास शख्स, कम्पनी में मैनेजर है। कामयाब होने के साथ दोस्ती शादी में बदला और आज उनके पास घर, गाड़ी, बैंक बैंलेस, प्यारे-प्यारे दो बच्चे और भी जीवन में सुख प्रदान करने वाले सभी सुविधाएँ हैं। उनके परिवार में अपने सास-ससूर, माँ- बाप की सेवा और अपने बच्चों को सही संस्कार देना पहली प्राथमिकता है। साथ ही वे अपने समाज के उत्थान में अपना योगदान दे रहे हैं।
वर्तमान के युवाओं में फैशन,महँगी मोटरबाइक, केटीएम, घुमने वाली परी, डीएसलआर कैमरा और मोबाईल की दुनिया तक सीमट कर रह गयी है। जो किसी काम के लिए नहीं। न अपने परिवार और न समाज में उनकी भगीदारी है। पर युवा इस लवेरिया बीमारी के बंधन को पैरों की बेड़ियाँ बना लेते हैं, या दोस्ती को अपने कैरियर, जिंदगी बनाने में सहयोगी बना लेते हैं। आज युवाओं से -पुछता है माता-पिता।।