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संघर्ष : अस्तित्व की (भाग - २)

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कृति रोली कच्छप

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सोमवारी के पिता गांव में हर घर का दरवाजा खटखटाते हैं, लेकिन कही से भी उन्हे कुछ नहीं पता चलता है। अंत में वो रश्मी को जंगल की तरफ से आते हुए देखते है और उदास होकर पूछते है की उसने सोमवारी को देखा है क्या? वो मुंह ऐठ कर कहती है की सोमवारी बदचलन है, भाग गई होगी अपने आशिक के साथ। रश्मी जो भी बोल रही थी उस पर सोमवारी के पिता भरोसा नहीं कर पा रहे थे। रश्मी के जोर जोर से सोमवारी के बारे बोलने पर आसपास के घरों के लोग बाहर आ जाते है। सब सोमवारी के पिता को ताना मारने लगते है कि बेटी को संभाल नहीं पाए और अभी सबके घरों में ढूंढ रहे है। सोमवारी के पिता काफी दुखी होते हैं, पर अब भी उन्हें लोगों की बातों पर यकीन नहीं था।

 

वो लोगों से दूर अपने घर आ जाते है और अपने बड़े बेटे से पुलिस स्टेशन चलने को कहते है। पुलिस स्टेशन गांव से करीब 40 किलोमीटर दूर था। सोमवारी के पिता और बड़े भाई साइकिल से पुलिस स्टेशन निकल पड़ते है। जब तक वो लोगों के पास से गुजरते, तब तक रश्मी ने चारों ओर सोमवारी के बारे उल्टी सीधी बातें फैला चुकी थी। ऐसे में जब सोमवारी के पिता सामने से गुजर रहे थे तो लोग कई तरह की बातें करने लगे। जैसे ही सोमवारी के भाई के कानों तक बात पहुंची, वह आग बबूला हो गया और लोगो से जाकर भिड़ गया। कुछ लड़कों से उसकी बहस भी हुई और हाथापाई भी। उसके पिता ने उसे रोका और थाना चलने को कहा। लोगो को सफाई देकर कोई फायदा नही था।

थाना पहुंचने तक 8 बज चुके थे। ड्यूटी पर 2 महिला पुलिस और 3 पुरुष थे। उन महिला पुलिस में से एक ने आकर उनसे थाना आने का कारण पूछा। बात और हाव भाव से वो भी एक आदिवासी महिला लग रही थी, तो सोमवारी के पिता को उस पर थोड़ा भरोसा हुआ और वो उसके सामने फूट फूट कर रोने लगे। वह आदिवासी महिला को अपना दुखड़ा सुनाते हैं। महिला सारी बात सुनकर अंदर जाकर दरोगा को बोलती है की "सर कोई केस नहीं हैं। लड़की किसी लड़के के साथ भाग गई होगी।" यह सब बाहर से सोमवारी के पिता सुन रहे थे। उन्हे बहुत दुख हुआ की अपना समझ कर उसने उस आदिवासी महिला को अपना दुखड़ा सुनाया था, लेकिन यह तो उनकी बेटी के चरित्र पर सवाल करने लगी। सोमवारी के पिता ने अपने बेटे से जाने का इशारा किया और दोनों बिना कुछ बोले ही अंधेरे में थाना से घर की ओर निकल पड़े।

धर सोमवारी अंधेरे कमरे में बंधी हुई दर्द से तड़प रही थी। वो भागने का सोचती है लेकिन सारे रास्ते बंद थे सिवाय उस रोशनदान के जिसमे लोहे को जाली लगी थी। वो पांचों

लड़कियों से बात करने की कोशिश करती हैं लेकिन कोई भी उससे बात करने को तैयार नहीं था। वह उदास होकर बैठ जाती है। तभी उसके सामने एक लड़की आती है जो उसके साथ आई थी। वो कहती है की कोई कुछ नहीं बताएगा तुम्हे। फिर सोमवारी उससे दोबारा पूछती है। वो कहती है की मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा की मैं यहां क्यों हूं। वो लडकी उससे कहती है धीरे धीरे तुम्हे सब समझ आ जायेगा।

 

सोमवारी कमरे के इधर उधर देखती है ताकि उसे भागने का रास्ता मिल सके लेकिन उस रोशनदान के अलावा कमरे में कोई खुली जगह ना थी। सोमवारी देख ही रही होती है तभी उसे बाहर से कुछ लोगो की आवाज सुनाई देती है। वह घसीटते हुए अपनी जगह पर जाती है। तभी दो लोग अंदर आते है और सोमवारी और एक लड़की को उठाकर ले जाते है और आखों पर पट्टी बांध देते हैं। सोमवारी बंधे मुंह से उनसे पूछने की कोशिश करती है की मुझे यहाँ क्यों लाए हो ? उनमें से एक कहता है की ये बहुत बोलती है, कुछ जुगाड करना होगा इसका जल्दी। फिर उनमें से एक कहीं फोन मिलाता है और बात करता हैं : "माल कब चाहिए बोल फ्रेश हैं सब।"

 

सोमवारी ये सब बातें सुनकर इतना तो समझ जाती है की उसे किसी दूसरे के हाथो में देने वाले है। दोनों लड़कियों को कार में बैठाते है और किसी दूसरी जगह पर ले आते हैं। दोनो के आखों पर लगी हुई पट्टी हटा दी जाती है। सोमवारी देखती है की यह जगह कई लड़कियों से भरी पड़ी थी जो साज श्रृंगार कर घूम रही थी।यह कोठा था जहाँ औरते अपना जिस्म बेच कर पेट पालती थी। एक मोटी औरत सामने आती है और दोनों लड़कों से पूछती हैं : कितने दिन? सामने से जवाब आता है दो दिन। दोनो को एक कमरे में ले जाया जाता है और हाथ खोल दिया जाता है। वह मोटी औरत उन्हें धमकाते हुए कहती है की भागने की कोशिश भी मत करना वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। दोनो डर जाती है। वह औरत एक लड़की को इशारा करती है कि उन्हे खाना दिया जाए। जल्द ही एक लडकी खाना लेकर उन दोनो के पास आती है।

 

सोमवारी के पास यही एक मौका था सब कुछ जानने का। वो उस लडकी को अपनी बातो में उलझाती है। वो लडकी उन्हे बताती है की उन्हे बेचने के लिए पकड़ कर लाया गया है। एक लडकी जो उस मोटी औरत को पसंद आएगी वो यहां रहेगी और एक किसी के घर नौकरानी का काम करेगी, वो भी बिना वेतन के। सोमवारी को धीरे धीरे सब समझ आने लगता है। इतने ही देर में वह मोटी औरत आ जाती है और सोमवारी की तरफ इशारा करती है। सोमवारी समझ जाती है की औरत ने उसे चुना है।

 

क्या सोमवारी अपनी सूझ बूझ से काम ले पाएगी? क्या वो घर लौट पाएगी? क्या सोमवारी के पिता को सोमवारी के बारे पता चल पाएगा?

 

To be continued……….

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