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संघर्ष : अस्तित्व की (भाग - ३)

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कृति रोली कच्छप

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वह औरत सोमवारी की ओर ध्यान से देखती हैं और उसे अपने साथ चलने का इशारा करती है। सोमवारी अपनी जगह से नही उठती। तभी उसे वह लडकी लात मारती हैं और उसे बाहर निकलने को कहती है। सोमवारी लड़खड़ाते हुए बाहर उस औरत के पास जाती है। वह औरत उसे बाल के सहारे पकड़ती है और घसीटते हुए अपने साथ ले जाती है। सोमवारी के रोने या चिल्लाने की किसी को परवाह नहीं होती। वह डर जाती है।

 

उसे एक अंधेरे कमरे में बंद कर दिया जाता है।सोमवारी के साथ वाली लड़की को भी वहाँ से दो लड़कों द्वारा ले जाया जाता है। उस अंधेरे कमरे में हल्की से रोशनी आती है तो सोमवारी देखती है की वो औरत कुछ वस्त्र लिए अंदर आ रही है। वो कपड़े सोमवारी के ऊपर फेंकती है और उसे पहने को कहती है। आज सोमवारी गैर मर्दों के सामने दिखाई जाने वाली थी। जो उसकी ज्यादा बोली लगाएगा सोमवारी उसको बेच दी जाएगी। उसे यह सबकुछ नहीं पता था। सोमवारी तैयार होने से मना करती है, लेकिन उसे वह औरत थप्पड़ मारती है और कहती है - 'जैसा कहा हाई वैसा करो'। उसे जान से मारने की धमकी भी देती है।

इधर सोमवारी के पिता और भाई थक हार कर उसे मरा मान लेते है। उनके पास सोमवारी की कहीं से कोई खबर नहीं मिलती है। सारे जगह उन्हे यही बोल दिया जाता है की आपकी बेटी भाग गई है। उसके पिता ढूंढते हुए थक तो जाते है लेकिन प्रयास जारी रखते है। उन्हे कही से कोई मदद नहीं मिलती है, फिर भी वो खुद कोशिश करते हैं। वो कहते है की मेरी बेटी भागी नही है और एक दिन जरूर वापस लौटेगी।

इधर रश्मी सबको सोमवारी के बारे भड़काने में लग जाती है और  बाकी गांववालो के दिमाग में भी ये बैठा देती है की कोई भी लडकी गायब हुई तो वो किसी के साथ भाग गई होगी इसलिए अपनी लड़की बेटी को संभाल कर रखे। सारे गांववाले उसकी बातों पर आसानी से भरोसा कर लेते हैं।क्योंकि इन अनपढ़ गांववालो के बीच यही एक थोड़ी पढ़ी लिखी थी।

उधर सोमवारी सबकुछ समझने की कोशिश में लगी थी। धीरे धीरे उसे सब समझ आने लगता है। लेकिन उसे इन सबसे बचने का एक भी रास्ता नजर नही आ रहा था। वो बस जैसा चल रहा था वैसे चलने दे रही थी। मन में अब भी सवाल बाकी थे जिनके जवाब उसे किसी से लेने थे। लेकिन अभी नहीं। वह हालात भांप चुकी थी और उसे पता था की ये सही वक्त नहीं हैं। वो बस सही समय का इंतजार कर रही थी ।

सोमवारी को धीरे धीरे सब पता लग गया की उसे अगवा कर बेचा गया है। उसने अपने पिता की मुंह से कभी चुरा कर ले जाने वालों की कहानी सुनी थी, पर वो आज उसके साथ हो रहा था। वो अपने पिता को याद करके दुखी हो जाती है। उसे पता था की अभी वो कुछ भी नहीं कर सकती है। इसलिए उसे जैसा कहा गया वह वैसे ही करने लगी। वह नए कपड़े पहन कर तैयार हो जाती है। उसके हाथ खोल दिए जाते है। उसे धीरे धीरे एक एक घूरते हुए मर्दों के पास से गुजरना पड़ता है जो उसकी ओर अश्लील निगाहों से देख रहे थे। अंत में आकर वो बीच में खड़ी हो जाती है। कोई भी उसे पसंद नहीं करता क्योंकि वह उम्र में छोटी थी और सुंदर नहीं थी।

सोमवारी वहीं उस कोठे में रह जाती हैं। कुछ दिनों में वह कोठे में सबका भरोसा जीत लेती है। वो कोठे की साफ सफाई पर ध्यान देती है। लेकिन घर लौटने की चाह धुंधली नहीं हुई थी। वो लगातार छुप कर कोठे से भागने का उपाय सोचती है। आखिर एक दिन ऐसा आता है, जिस दिन कोठे में सब व्यस्त होते हैं। कोई किसी पर ध्यान नहीं दे रहा होता है।

 

सोमवारी मौका देखती है और कोठे से भाग जाती हैं। कोठे से भागने के बारे में तो उसने सोच रखा था लेकिन घर कैसे पहुंचेगी उसे मालूम नहीं था। वह दो दिन तक भटकते रहती है। इधर कोठे में अगले दिन ही उसके गायब होने की खबर पता चल जाती है। वहाँ से दो लड़के उसे ढूंढने में लग जाते है। इधर सोमवारी भिखारियों से मांग कर खाती है।

एक दिन एक भला आदमी उसे बातें करता है और पूछता है कि अगर वह उसके साथ चलेगी। भूख और पैसे की जरूरत सोमवारी को उस आदमी के साथ चलने पर मजबूर कर देती है। वह उस आदमी के साथ चल देती है। उस आदमी के घर पहुंचने पर वो देखती है की वो अपने परिवार के साथ रहता था और वो सोमवारी को काम करने के लिए लाया था। सोमवारी को जल्द ही सब समझ आने लगा लेकिन हालात के आगे मजबूर थी। छोड़ कर जा भी नहीं सकती थीं क्योंकि उसे पैसे चाहिए थे और एक छत की जरूरत थी।

धीरे धीरे महीने बीते, फिर साल बीतते गए। सोमवारी अब भी उस भले परिवार में काम करती थी।

परिवार वाले उसे बहुत चाहते थे। पर सोमवारी को हर दिन अपने घर की याद आती थी। बहुत ढूंढने पर भी सोमवारी के  घर वालो के बारे में कुछ भी पता नही चल पाया। जो आदमी उसे बचपन में अपने साथ लाया था आज वही आदमी उसके परिवार वालो को ढूंढने में मदद कर रहा था लेकिन कही से कुछ न पता चलने पर सोमवारी हार मान लेती है।

सोमवारी के पिता ने उसकी याद में आत्महत्या कर ली थी और भाई कही दूर चला गया रहने अपनी मां को लेकर।किसी को कोई ख़बर नहीं थी की वो दोनो कहां हैं। सोमवारी अपने साथ हुए हादसे का बदला भी नहीं ले पाई क्योंकि गांव में अब सबकुछ बदल चुका था।

 

अब वो उसी परिवार से घुल मिल गई थी और उसी परिवार को अपना घर मानती थी। घरवाले भी उसे अपना मानते थे। वह कोशिश करना बंद कर देती है और अंत में वो वही रह जाती है और उसकी बिदाई भी एक अच्छे घर में हो जाती है।

 

घर जाने की लड़ाई तो वो हार गई लेकिन जिंदगी की सही राह पकड़ पाई। और इस लड़ाई में कई मुश्किल आई पर वह सही मायने में लड़ कर जी पाई।वो अपनी नई जिंदगी में ढल गई।

The end.

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